UGC NET Exam Pattern

UGC NET Exam Pattern 2023

UGC NET Exam Pattern
UGC NET Exam Pattern

UGC NET Exam Pattern 2023 | UGC NET Exam Pattern

UGC NET Exam Pattern 2023: UGC NET Exam Pattern The UGC NET (University Grants Commission National Eligibility Test) is a national-level examination conducted in India to determine the eligibility of candidates for the post of Assistant Professor and for the award of Junior Research Fellowship (JRF) in Indian universities and colleges. The exam follows a specific pattern, which includes the following key components:

  1. Exam Format: The UGC NET exam is conducted in two papers – Paper 1 and Paper 2. Both papers are conducted in a computer-based test (CBT) format.
  2. Paper 1: This is a common paper for all candidates and consists of 50 multiple-choice questions (MCQs) designed to test the candidates’ teaching and research aptitude, reasoning ability, comprehension, and general awareness. The total duration of Paper 1 is 3 hours.
  3. Paper 2: Paper 2 is subject-specific and includes 100 MCQs based on the subject chosen by the candidate. This paper evaluates the candidates’ in-depth knowledge of their chosen subject. The total duration of Paper 2 is 3 hours.
  4. Marking Scheme: Each correct answer in both papers carries 2 marks. There is no negative marking for incorrect answers.
  5. Qualifying Criteria: To qualify for the award of JRF or eligibility for Assistant Professorship, candidates must secure the minimum qualifying marks set by UGC. These qualifying marks vary for different categories (General, OBC, SC, ST, etc.) and are based on the aggregate performance of candidates in both Paper 1 and Paper 2.
  6. Syllabus: The syllabus for Paper 2 varies depending on the subject chosen by the candidate. UGC provides a detailed syllabus for each subject, covering various topics and sub-topics.

UGC NET Exam Pattern. UGC NET Exam Pattern 2023. It’s important for candidates to thoroughly understand the UGC NET exam pattern, syllabus, and prepare accordingly to perform well in the examination.


Also Read

ASSAM EARTHQUAKE REASON | असम में भूकंप आने का कारण

मार्च 2023 में असम राज्य में भूकंप के लगातार दो झटके महसूस किये गए | इस भूकंप का केंद्र ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण में जोरहट जिले के पास 50किमी कि गहराई में था | भूकंप का पहला झटका सुबह 9 बजे के आस पास एवं दूसरा झटका सुबह 11 बजे के आस पास महसूस किया गया | भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 3.6 थी

क्या होता है भूकंप

पृथ्वी की सतह के नीचे चट्टानों के संतुलन में अव्यवस्था उत्पन्न होने के कारण पृथ्वी में कम्पन होता है जिसे भूकंप कहा जाता है | जिस स्थान से भूकंप कि तरंगे उत्पन्न होती हैं उसे भूकंप मूल कहा जाता है और जिस स्थान पर पृथ्वी की सतह पर ये सबसे पहले महसूस की जाती है उसे एपीसेंटर कहा जाता है |

भूकंपीय तरंगो के प्रकार

भुँकम्पीय तरंगे मुख्यतः तीन प्रकार कि होती हैं P तरंग , S तरंग एवं L तरंग | इन सबमे Lतरंग सबसे भयंकर और विनाशकारी होती हैं | सबसे पहले P प्रकार की तरंगे उत्पन्न होती हैं उसके पश्चात S एवं सबसे अन्त में L तरंग उत्पन्न होती हैं |

असम भूकंप का कारण

असम भारत के हिमालय क्षेत्र का हिस्सा है | हिमालय नविन मोडदार पर्वत है जिसका उत्थान आज भी जारी है | प्रायद्वीपीय भारतीय प्लेट के यूरोपियन प्लेट के निचे धंसने के कारण हिमालय का उत्थान होता है और इस क्षेत्र में भुकम्प के झटके महसूस किये जाते हैं | इस प्रकार हिमालय क्षेत्र प्लेट टेक्टोनिक के अनुसार प्लेटो की अभिसारी सीमा में स्थित है जो भूगर्भिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र होता है | असम के अलावा सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र में आने वाले भूकंपो का कारण मुख्यतः यही है |

References | सन्दर्भ

अन्य उपयोगी टॉपिक्स

Temperature Inversion

Temperature Inversion | तापमान व्युत्क्रमण

Temperature Inversion | तापमान व्युत्क्रमण: तापमान व्युत्क्रमण को समझना: प्रकार, कारण और निहितार्थ

Temperature Inversion | तापमान व्युत्क्रमण: तापमान व्युत्क्रमण एक मौसम संबंधी घटना है जो हमारे मौसम पैटर्न और वायु गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह तब होता है जब वायुमंडल का सामान्य तापमान ढाल उलट जाता है, जिससे ज़मीन के पास ठंडी हवा गर्म हवा की एक परत के नीचे फंस जाती है। यह ब्लॉग पोस्ट तापमान व्युत्क्रमण के विभिन्न प्रकारों, उनके कारणों और उनके निहितार्थों पर गहराई से चर्चा करता है।

Temperature Inversion | तापमान व्युत्क्रमण: तापमान व्युत्क्रमण क्या है?

सामान्य परिस्थितियों में, ऊँचाई के साथ हवा का तापमान घटता है। हालाँकि, तापमान व्युत्क्रमण के दौरान, ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ता है। यह व्युत्क्रमण परत एक ढक्कन की तरह काम करती है, प्रदूषकों को फँसाती है और विभिन्न मौसम और पर्यावरणीय प्रभावों को जन्म देती है।

तापमान व्युत्क्रमण के प्रकार

  1. विकिरण व्युत्क्रमण

विवरण: विकिरण व्युत्क्रमण स्पष्ट, शांत रातों के दौरान होता है। ज़मीन विकिरण के माध्यम से तेज़ी से गर्मी खोती है, जिससे उसके ठीक ऊपर की हवा ठंडी हो जाती है। यह ठंडी हवा गर्म हवा की एक परत के नीचे फँस जाती है।

कारण:

  • रात्रिकालीन विकिरण: विकिरण के कारण रात में जमीन का तेजी से ठंडा होना।
  • शांत हवाएँ: हवा की कमी हवा की परतों के मिश्रण को रोकती है।
  • साफ़ आसमान: बादलों की अनुपस्थिति विकिरणीय शीतलन को बढ़ाती है।

निहितार्थ:

  • कोहरे का बढ़ना।
  • प्रदूषकों का फंसना, जिससे हवा की गुणवत्ता खराब होती है।
  1. एडवेक्शन इनवर्जन

विवरण: एडवेक्शन इनवर्जन तब होता है जब गर्म हवा ठंडी सतह, जैसे ठंडा पानी या बर्फ से ढकी जमीन पर क्षैतिज रूप से चलती है।

कारण:

  • हवा की क्षैतिज गति: गर्म हवा ठंडी सतह पर चलती है।
  • भौगोलिक विशेषताएँ: महासागरों या बर्फ से ढके क्षेत्रों जैसी ठंडी सतहों की उपस्थिति।

निहितार्थ:

  • समुद्री कोहरे के निर्माण को जन्म दे सकता है।
  • तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करता है, खासकर गर्मियों के दौरान।
  1. अवसादन व्युत्क्रम

विवरण: अवसादन व्युत्क्रम उच्च दाब प्रणालियों से जुड़ा हुआ है, जहाँ हवा नीचे उतरती है, गर्म होती है और संपीड़ित होती है, जिससे ठंडी सतह की हवा के ऊपर गर्म हवा की एक परत बनती है।

कारण:

  • उच्च दाब प्रणाली: उच्च दाब क्षेत्रों में अवरोही हवा।
  • संपीड़न तापन: अवरोही हवा का गर्म होना।

निहितार्थ:

  • साफ़ आसमान और स्थिर मौसम।
  • लंबे समय तक चलने वाले व्युत्क्रम जो प्रदूषकों को लंबे समय तक फँसा सकते हैं।
  1. वाताग्र व्युत्क्रम

विवरण: वाताग्र व्युत्क्रम अलग-अलग तापमान वाले दो वायु द्रव्यमानों के बीच की सीमा पर होता है। गर्म हवा वाताग्र सीमा पर ठंडी हवा को ओवरराइड करती है, जिससे एक व्युत्क्रम परत बनती है।

कारण:

  • गर्म मोर्चे: पीछे हटती ठंडी हवा के द्रव्यमान पर गर्म हवा चलती है।
  • ठंडे मोर्चे: ठंडी हवा गर्म हवा को काटती और ऊपर उठाती है।

निहितार्थ:

  • तापमान में तीव्र अंतर।
  • उलट परत पर बादल बनना और वर्षा।
  1. घाटी व्युत्क्रमण

विवरण: यह तब होता है जब ठंडी हवा नीचे उतरती है और घाटी में जमा हो जाती है, जो गर्म हवा की एक परत के नीचे फंस जाती है।

कारण:

  • स्थलाकृति: घाटियों और पहाड़ों की उपस्थिति।
  • रात्रिकालीन शीतलन: रात में घाटियों में हवा का तेजी से ठंडा होना।

निहितार्थ:

  • घाटियों में लगातार कोहरा।
  • शहरी घाटियों में गंभीर वायु प्रदूषण प्रकरण।

तापमान व्युत्क्रमण के कारण

तापमान व्युत्क्रमण विभिन्न कारकों के कारण हो सकता है, जिनमें शामिल हैं:

  • रात्रिकालीन विकिरण शीतलन: साफ़ आसमान और शांत हवाएँ सतह पर विकिरण शीतलन को बढ़ाती हैं, जिससे विकिरण व्युत्क्रमण होता है।
  • भौगोलिक विशेषताएँ: घाटियाँ, पहाड़ और ठंडे जल निकाय घाटी और संवहन व्युत्क्रमण में योगदान करते हैं।
  • मौसम प्रणाली: उच्च दबाव प्रणाली और ललाट सीमाएँ अवतलन और ललाट व्युत्क्रमण बनाती हैं।
  • मानव गतिविधियाँ: शहरी ऊष्मा द्वीप और प्रदूषण तापमान व्युत्क्रमण के प्रभावों को बढ़ा सकते हैं।

तापमान व्युत्क्रमण के निहितार्थ

  • वायु गुणवत्ता: व्युत्क्रमण प्रदूषकों को फँसाता है, जिससे धुँआ और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होती हैं, खासकर शहरी क्षेत्रों में।
  • मौसम पैटर्न: व्युत्क्रमण वातावरण को स्थिर कर सकता है, जिससे लंबे समय तक साफ़ आसमान या लगातार कोहरा बना रहता है।
  • कृषि: कृषि क्षेत्रों में विकिरण व्युत्क्रमण के दौरान फसलों में पाले से नुकसान हो सकता है।
  • विमानन: तापमान व्युत्क्रमण अशांति पैदा कर सकता है और उड़ान संचालन को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष

तापमान व्युत्क्रमण को समझना मौसम विज्ञानियों, पर्यावरण वैज्ञानिकों और शहरी योजनाकारों के लिए महत्वपूर्ण है। तापमान व्युत्क्रमण के प्रकारों और कारणों को पहचानकर, हम उनकी घटना का बेहतर अनुमान लगा सकते हैं और वायु गुणवत्ता और मौसम के पैटर्न पर उनके प्रभावों को कम कर सकते हैं। तापमान व्युत्क्रमण हमें हमारे वायुमंडल में नाजुक संतुलन और सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के लिए सावधानीपूर्वक निगरानी और प्रबंधन की आवश्यकता की याद दिलाता है।


यदि आपके कोई प्रश्न हैं या तापमान व्युत्क्रमण और उनके प्रभावों के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो बेझिझक हमसे संपर्क करें!

Read More- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory)


Also Read

Atmospheric Humidity and its Types

Atmospheric Humidity and its Types | वायुमंडलीय आर्द्रता एवं इसके प्रकार

Atmospheric Humidity and its Types

Atmospheric Humidity and its Types. आर्द्रता – वायु में उपस्थित नमी की मात्र आर्द्रता कहलाती है | प्रति इकाई आयतन में इसकी अधिकतम मात्रा 4 प्रतिशत तक ही हो सकती है | जिस स्थान पर वाष्पीकरण अधिक होता है वहां जलवाष्प की मात्र अधिक होती है अतः इसकी मात्र स्थल से जल एवं भूमध्य रेखा से ध्रुवो की ओर परिवर्तनशील होती है |

महासागरो पर सर्वाधिक वाष्पीकरण 20-40 अक्षांशों के मध्य होता है क्युकी इन अक्षांशो में पवन की गति  तीव्र होती है | वाष्पीकरण के विपरीत प्रक्रिया संघनन है | एक निश्चित तापमान पर एक घन मीटर वायु जितनी जलवाष्प अवशोषित कर सकती है उसे वायु की आर्द्रता सामर्थ्य कहते हैं | जब वायु में आर्द्रता सामर्थ्य के बराबर जलवाष्प आ जाती है तो ऐसी वायु संतृप्त वायु कहलाती है एवं जिस तापमान पर वायु संतृप्त होती है उसे ओसांक बिंदु कहते हैं |

आर्द्रता को तीन प्रकार से व्यक्त किया जाता है –

  1. निरपेक्ष आर्द्रता
  2. विशिष्ट आर्द्रता
  3. सापेक्ष आर्द्रता अथवा रिलेटिव हुमिडिटी

Atmospheric Humidity and its Types | निरपेक्ष आर्द्रता

वायु के प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा | इसे ग्राम प्रति घन मीटर में व्यक्त करते हैं | यह स्थान व समय के अनुसार परिवर्तनशील है | तापमान में वृद्धि करने पर हवा कि जलवाष्प धारण करने की क्षमता में वृद्धि करती है | एवं तापमान में कमी इसकी नमी धारण करने की क्षमता में कमी करती है | यह जलवाष्प की वास्तविक मात्र को प्रकट करती है |

विशिष्ट आर्द्रता

 वायु के प्रति इकाई भार में उपस्थित जलवाष्प की मात्र को विशिष्ट आर्द्रता कहा जाता है | इसे ग्राम प्रति किलोग्राम में व्यक्त करते हैं | यह आर्द्रता के मापक कि सर्वाधिक उपयुक्त विधि है | उदाहरण के लिए यदि एक किलोग्राम वायु में 5 ग्राम जलवाष्प है तो वायु की विशिष्ट आर्द्रता 5 ग्राम प्रति किलोग्राम होगी | यह भूमध्य रेखा के पास अधिकतम एवं ध्रुवों पर न्यूनतम होती है |

सापेक्ष आर्द्रता

किसी निश्चित तापमान पर वायु में उपस्थित नमी की मात्र एवं उसी तापमान पर वायु की आर्द्रता ग्रहण करने की सामर्थ्य / आर्द्रता सामर्थ्य का अनुपात सापेक्ष आर्द्रता कहलाता है | इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है | जब सापेक्ष आर्द्रता 100 प्रतिशत हो जाती है तो वायु संतृप्त हो जाती है एवं संघनन प्रारंभ हो जाता है |  सापेक्षिक आर्द्रता में भूमध रेखा से ध्रुवों की ओर तथा सागरतल से ऊंचाई बढ़ने पर कमी होती है |


ये भी पढ़ें

UGC NET GEOGRAPHY Syllabus 2023

UGC NET GEOGRAPHY Syllabus 2023 (English)

Latest syllabus of UGC NET for geography has been upoaded on websites of UGC(Univesity Grant Commission) and NTA(National Testing Agency). All aspirants must make preparation according to new syllabus . last update 25-04-2023

UGC NET GEOGRAPHY  Syllabus 2023 | NET GEOGRAPHY PAPER II SYLLABUS

Paper II of Geography consists of 10 units which are

Unit I – Geomorphology

Unit II – Climatology

Unit III- Oceanography

Unit IV- Geography of Environment

Unit V – Population and Settlement Geography

Unit VI- Geography of Economic Activities and Regional Development

Unit VII – Cultural, Social and Political Geography

Unit VIII – Geographic Thought

Unit IX – Geographical Techniques

Unit X- Geography of India

UGC NET GEOGRAPHY  Syllabus 2023 | Detailed syllabus of Geography NET

UNIT-I Geomorphology

Continental Drift, Plate Tectonics, Endogenetic and Exogenetic forces. Denudation and Weathering, Geomorphic Cycle (Davis and Penck), Theories and Process of Slope Development, Earth Movements (seismicity, folding, faulting and vulcanicity), Landform Occurrence and Causes of Geomorphic Hazards (earthquakes, volcanoes, landslides and avalanches)

UNIT –II Climatology

Composition and Structure of Atmosphere; Insolation, Heat Budget of Earth, Temperature, Pressure and Winds, Atmospheric Circulation (air-masses, fronts and upper air circulation, cyclones and anticyclones (tropical and temperate), Climatic Classification of Koppen & Thornthwaite, ENSO Events (El Nino, La Nina and Southern Oscillations), Meteorological Hazards and Disasters (Cyclones, Thunderstorms, Tornadoes, Hailstorms, Heat and Cold waves Drought and Cloudburst , Glacial Lake Outburst (GLOF), Climate Change: Evidences and Causes of Climatic Change in the past, Human impact on Global Climate.

UNIT-III Oceanography

 Relief of Oceans, Composition: Temperature, Density and Salinity, Circulation: Warm and Cold Currents, Waves, Tides, Sea Level Changes, Hazards: Tsunami and Cyclone

UNIT –IV Geography of Environment

Components: Ecosystem (Geographic Classification) and Human Ecology, Functions: Trophic Levels, Energy Flows, Cycles (geo-chemical, carbon, nitrogen and oxygen), Food Chain, Food Web and Ecological Pyramid, Human Interaction and Impacts, Environmental Ethics and Deep Ecology, Environmental Hazards and Disasters (Global Warming, Urban Heat Island, Atmospheric Pollution, Water Pollution, Land Degradation), National Programmes and Policies: Legal Framework, Environmental Policy, International Treaties, International Programmes and Polices (Brundtland Commission, Kyoto Protocol, Agenda 21, Sustainable Development Goals, Paris Agreement)

UNIT –V Population and Settlement Geography

Population Geography Sources of population data (census, sample surveys and vital statistics, data reliability and errors). World Population Distribution (measures, patterns and determinants), World Population Growth (prehistoric to modern period). Demographic Transition, Theories of Population Growth (Malthus, Sadler, and Ricardo). Fertility and Mortality Analysis (indices, determinants and world patterns). Migration (types, causes and consequences and models), Population Composition and Characteristics (age, sex, rural-urban, occupational structure and educational levels), Population Policies in Developed and Developing Countries. Settlement Geography Rural Settlements (types, patterns and distribution), Contemporary Problems of Rural Settlements ( rural-urban migration; land use changes; land acquisition and transactions), Theories of Origin of Towns (Gordon Childe, Henri Pirenne, Lewis Mumford), Characteristics and Processes of Urbanization in Developed and Developing Countries (factors of urban growth, trends of urbanisation, size, structure and functions of urban areas). Urban Systems ( the law of the primate city and rank size rule) Central Place Theories (Christaller and Losch), Internal Structure of the City, Models of Urban Land Use (Burgess, Harris and Ullman , and Hoyt), Concepts of Megacities, Global Cities and Edge Cities, Changing Urban Forms (peri-urban areas, rural-urban fringe, suburban , ring and satellite towns), Social Segregation in the City, Urban Social Area Analysis, Manifestation of Poverty in the City (slums, informal sector growth, crime and social exclusion).

Unit–VI: Geography of Economic Activities and Regional Development

Economic Geography Factors affecting spatial organisation of economic activities (primary, secondary, tertiary and quarternary), Natural Resources (classification, distribution and associated problems), Natural Resources Management. World Energy Crises in Developed and Developing Countries. Agricultural Geography Land capability classification and Land Use Planning, Cropping Pattern: Methods of delineating crop combination regions (Weaver, Doi and Rafiullah), Crop diversification, Von Thunen’s Model of Land Use Planning. Measurement and Determinants of Agricultural Productivity, Regional variations in Agricultural Productivity, Agricultural Systems of the World. Industrial Geography Classification of Industries, Factors of Industrial Location; Theories of Industrial Location (A. Weber, E. M. Hoover, August Losch, A. Pred and D. M. Smith). World Industrial Regions, Impact of Globalisation on manufacturing sector in Less Developed Countries, Tourism Industry, World distribution and growth of Information And Communication Technology (ICT) and Knowledge Production (Education and R & D) Industries. Geography of Transport and Trade Theories and Models of spatial interaction (Edward Ullman and M. E. Hurst) Measures and Indices of connectivity and accessibility; Spatial Flow Models: Gravity Model and its variants, World Trade Organisation, Globalisation and Liberalisation and World Trade Patterns. Problems and Prospects of Inter and Intra Regional Cooperation and Trade. Regional Development Typology of Regions, Formal and Fictional Regions, World Regional Disparities, Theories of Regional Development(Albert O. Hirschman, Gunnar Myrdal, John Friedman, Dependency theory of Underdevelopment, Global Economic Blocks, Regional Development and Social Movements in India

Unit – VII: Cultural, Social and Political Geography

Cultural and Social Geography Concept of Culture, Cultural Complexes, Areas and Region, Cultural Heritage, Cultural Ecology. Cultural Convergence, Social Structure and Processes, Social Well-being and Quality of Life, Social Exclusion, Spatial distribution of social groups in India (Tribe, Caste, Religion and Language), Environment and Human Health, Diseases Ecology, Nutritional Status (etiological conditions, classification and spatial and seasonal distributional patterns with special reference to India) Health Care Planning and Policies in India, Medical Tourism in India. Political Geography Boundaries and Frontiers (with special reference to India), Heartland and Rimland Theories. Trends and Developments in Political Geography, Geography of Federalism, Electoral Reforms in India, Determinants of Electoral Behaviour, Geopolitics of Climate Change, Geopolitics of World Resources, Geo-politics of India Ocean, Regional Organisations of Cooperation (SAARC, ASEAN, OPEC, EU). Neopolitics of World Natural Resources.

Unit VIII: Geographic Thought

Contributions of Greek, Roman, Arab, Chinese and Indian Scholars, Contributions of Geographers (Bernhardus Varenius, Immanuel Kant, Alexander von Humboldt, Carl Ritter, Scheafer & Hartshorne), Impact of Darwinian Theory on Geographical Thought. Contemporary trends in Indian Geography: Cartography, Thematic and Methodological contributions. Major Geographic Traditions (Earth Science, manenvironment relationship, area studies and spatial analysis), Dualisms in Geographic Studies (physical vs. human, regional vs. systematic, qualitative vs. quantitative, ideographic vs. nomothetic), Paradigm Shift, Perspectives in Geography (Positivism, Behaviouralism, Humanism, Structuralism, Feminism and Postmodernism).

Unit IX: Geographical Techniques

Sources of Geographic Information and Data (spatial and non-spatial), Types of Maps, Techniques of Map Making (Choropleth, Isarithmic, Dasymetric, Chorochromatic, Flow Maps) Data Representation on Maps (Pie diagrams, Bar diagrams and Line Graph, GIS Database (raster and vector data formats and attribute data formats). Functions of GIS (conversion, editing and analysis), Digital Elevation Model (DEM), Georeferencing (coordinate system and map projections and Datum), GIS Applications ( thematic cartography, spatial decision support system), Basics of Remote Sensing (Electromagnetic Spectrum, Sensors and Platforms, Resolution and Types, Elements of Air Photo and Satellite Image Interpretation and Photogrammetry), Types of Aerial Photographs, Digital Image Processing: Developments in Remote Sensing Technology and Big Data Sharing and its applications in Natural Resources Management in India, GPS Components (space, ground control and receiver segments) and Applications, Applications of Measures of Central Tendency, Dispersion and Inequalities, Sampling, Sampling Procedure and Hypothesis Testing (chi square test, t test, ANOVA), Time Series Analysis, Correlation and Regression Analysis, Measurement of Indices, Making Indicators Scale Free, Computation of Composite Index, Principal Component Analysis and Cluster Analysis, Morphometric Analysis: Ordering of Streams, Bifurcation Ratio, Drainage Density and Drainage Frequency, Basin Circularity Ratio and Form Factor, Profiles, Slope Analysis, Clinographic Curve, Hypsographic Curve and Altimetric Frequency Graph.

Unit – X: Geography of India

Major Physiographic Regions and their Characteristics; Drainage System (Himalayan and Peninsular), Climate: Seasonal Weather Characteristics, Climatic Divisions, Indian Monsoon (mechanism and characteristics), Jet Streams and Himalayan Cryosphere, Types and Distribution of Natural Resources: Soil, Vegetation, Water, Mineral and Marine Resources. Population Characteristics (spatial patterns of distribution), Growth and Composition (rural-urban, age, sex, occupational, educational, ethnic and religious), Determinants of Population, Population Policies in India, Agriculture ( Production, Productivity and Yield of Major Food Crops), Major Crop Regions, Regional Variations in Agricultural Development, Environmental, Technological and Institutional Factors affecting Indian Agriculture; Agro-Climatic Zones, Green Revolution, Food Security and Right to Food. Industrial Development since Independence, Industrial Regions and their characteristics, Industrial Policies in India. Development and Patterns of Transport Networks (railways, roadways, waterways, airways and pipelines), Internal and External Trade (trend, composition and directions), Regional Development Planning in India, Globalisation and its impact on Indian Economy, Natural Disasters in India (Earthquake, Drought, Flood, Cyclone, Tsunami, Himalayan Highland Hazards and Disasters.)


Also Read

Endogenic and Exogenic Forces

Endogenic and Exogenic Forces(Geography Notes) | अंतर्जात बल एवं बहिर्जात बल : पृथ्वी की स्थलरूप प्रक्रियाएँ और गतियां

स्थलरूप प्रक्रियाएँ पृथ्वी की सतह को आकार देने वाली विभिन्न गतियों और गतिविधियों का वर्णन करती हैं। इन प्रक्रियाओं को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा गया है: अंतर्जात और बहिर्जात प्रक्रियाएँ।

अंतर्जात प्रक्रियाएँ (Endogenic Processes)

यह प्रक्रियाएँ पृथ्वी के आंतरिक भाग से उत्पन्न होती हैं। इसमें मुख्यतः दो प्रकार की गतियाँ शामिल हैं:

1. विवर्तनिक गतियाँ (Diastrophism)

यह पृथ्वी की पर्पटी (क्रस्ट) की गति और विकृति से संबंधित है। इसमें दो प्रकार की गतियाँ आती हैं:

  • ओरोजेनी (Orogeny): पर्वत निर्माण की प्रक्रिया।
  • एपीरोजेनी (Epeirogeny): महाद्वीपों के उठने और गिरने की प्रक्रिया।

2. ज्वालामुखी गतिविधियाँ (Volcanism)

यह पृथ्वी की सतह पर लावा, गैसों और अन्य सामग्री का उत्सर्जन है, जो मुख्यतः ज्वालामुखियों से होता है।

बहिर्जात प्रक्रियाएँ (Exogenic Processes)

यह प्रक्रियाएँ बाहरी स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करती हैं और इनमें मुख्यतः निम्नलिखित प्रक्रियाएँ शामिल हैं:

1. अपक्षय (Weathering)

यह प्रक्रिया चट्टानों के टूटने और विघटन से संबंधित है। इसे तीन प्रकार में विभाजित किया जा सकता है:

  • भौतिक अपक्षय (Physical Weathering): चट्टानों का यांत्रिक टूटना।
  • रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering): चट्टानों का रासायनिक विघटन।
  • जैविक अपक्षय (Biological Weathering): पौधों और जीवों द्वारा चट्टानों का टूटना।

2. अपरदन (Erosion)

यह प्रक्रिया जल, वायु और बर्फ द्वारा सामग्री का हटाया जाना है।

3. परिवहन (Transportation)

यह प्रक्रिया अपक्षय और अपरदन से उत्पन्न सामग्री का एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण है।

4. निक्षेपण (Deposition)

यह प्रक्रिया सामग्री के निचले स्थान पर जमा होने से संबंधित है।

इन प्रक्रियाओं का पृथ्वी की स्थलरूप संरचनाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जो समय के साथ लगातार परिवर्तित होती रहती हैं।

अन्य टॉपिक (Buy Online,Pdf Download) G C LEONG GEOGRAPHY BOOK 2023 | Certificate Physical and Human Geography written by Goh Cheng Leon

national parks and sancturies in rajasthan

National Park and Sancturies in Rajasthan | राजस्थान के राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य

National Park and Sancturies in Rajasthan | राजस्थान के राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य: राजस्थान, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है, साथ ही भारत के कुछ सबसे विविध और जीवंत राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों का भी घर है। राज्य के अनूठे परिदृश्य, शुष्क रेगिस्तान से लेकर हरे-भरे जंगलों तक, वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत विविधता के लिए एक आश्रय प्रदान करते हैं। यहाँ, हम राजस्थान के कुछ प्रमुख राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की खोज करेंगे।

National Park and Sancturies in Rajasthan: राष्ट्रीय उद्यान

  1. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर
    28.73 वर्ग किलोमीटर में फैला, केवलादेव यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है, जो अपनी पक्षी आबादी के लिए प्रसिद्ध है। यह पार्क पक्षी देखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण स्वर्ग है, जो हर साल हज़ारों प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है।
  2. रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाई माधोपुर
    282.03 वर्ग किलोमीटर में फैला रणथंभौर भारत के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है, जो अपनी बाघ आबादी के लिए जाना जाता है। पार्क के सुरम्य खंडहर और हरे-भरे परिवेश इसे वन्यजीव प्रेमियों के लिए ज़रूर देखने लायक बनाते हैं।
  3. मुकुंदरा राष्ट्रीय उद्यान
    कोटा और चित्तौड़गढ़ में फैला मुकुंदरा अपने विविध पारिस्थितिकी तंत्रों के साथ एक शांत जगह प्रदान करता है। यह पार्क बड़े मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व का हिस्सा है, जो बाघ संरक्षण पर जोर देता है।

National Park and Sancturies in Rajasthan : वन्यजीव अभयारण्य

  1. बांध बराठा वन्यजीव अभयारण्य, भरतपुर
    यह अभयारण्य 199.24 वर्ग किलोमीटर में फैला है और यहाँ कई तरह की वन्यजीव प्रजातियाँ रहती हैं, जो इस क्षेत्र की जैव विविधता के लिए एक महत्वपूर्ण आवास प्रदान करती हैं।
  2. रेगिस्तानी वन्यजीव अभयारण्य, जैसलमेर और बाड़मेर
    3,162 वर्ग किलोमीटर में फैला यह अभयारण्य अद्वितीय रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र को दर्शाता है। यह भारतीय हिरन और रेगिस्तानी लोमड़ी सहित कठोर रेगिस्तानी परिस्थितियों के अनुकूल प्रजातियों का घर है।
  3. कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य, उदयपुर, राजसमंद और पाली
    610.53 वर्ग किलोमीटर में फैला यह अभयारण्य ऐतिहासिक कुंभलगढ़ किले से घिरा हुआ है। यह अभयारण्य वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध है, जिसमें दुर्लभ और मायावी तेंदुआ भी शामिल है।
  4. सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य, अलवर
    492.29 वर्ग किलोमीटर में फैला सरिस्का राजस्थान का एक और प्रमुख बाघ अभयारण्य है। अभयारण्य के विविध परिदृश्य और ऐतिहासिक खंडहर इसके आकर्षण को बढ़ाते हैं।
  5. माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य, सिरोही
    326.10 वर्ग किलोमीटर में फैला यह अभयारण्य अरावली पर्वतमाला में स्थित है। यह अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है और इस क्षेत्र की कई अनूठी वनस्पतियों और जानवरों की प्रजातियों के लिए एक आश्रय स्थल है।
S.NoName of National Parks/ Wild Life SanctuaryDistrictArea(Sq.km.)
   National Parks
1Keoladeo National ParkBharatpur28.73
2Ranthambore National ParkSawai Madhopur282.03
3Mukundara National ParkKota, Chittorgarh 
  Sub Total310.76
    Sanctuaries
1Bandh Baratha WL SanctuaryBharatpur199.24
2Bassi WL SanctuaryChittorgarh138.69
3Bhensrodgarh WL SanctuaryChittorgarh201.40
4Darrah Game SanctuaryKota, Jhalawar239.76
5Desert WL SanctuaryBarmer, Jaisalmer3,162.00
6Fulwari ki Nal WL SanctuaryUdaipur511.41
7Jaisamand WL SanctuaryUdaipur52.34
8Jamwa Ramgarh WL SanctuaryJaipur300.00
9Jawahar Sagar WL SanctuaryKota,Bundi,Chittorgarh220.09
10Keladevi WL SanctuaryKaroli,Sawai Madhopur676.82
11Kesarbagh WL SanctuaryDholpur14.76
12Kumbalgarh WL SanctuaryUdaipur,Rajsamand,Pali610.53
13Mount Abu WL SanctuarySirohi326.10
14Nahargarh WL SanctuaryJaipur52.40
15National Chambal WL SanctuaryKota, S.Madhopur, Bundi, Dholpur, Karauli280.00
16Ramgarh Vishdhari WL SanctuaryBundi307.00
17Ramsagar WL SanctuaryDholpur34.40
18Sajjangarh WL SanctuaryUdaipur5.19
19Sariska WL SanctuaryAlwar492.29
19 (A)Sariska  ‘A’ WL SanctuaryAlwar3.01
20Sawai Manshingh WL SanctuarySawai Madhopur113.07
21Shergarh WL SanctuaryBaran81.67
22Sitamata WL SanctuaryChittorgarh,Udaipur422.94
23Tal Chappar WL SanctuaryChuru7.19
24Todagarh Rawali WLSanctuaryAjmer,Pali,Rajsamand475.24
25Van Vihar WL SanctuaryDholpur25.60
26Sawai Madhopur SanctuarySawai Madhopur131.30
  Sub Total9084.44
  Grand Total9395.20

Source: Rajasthan Forest Statistics 2017.

Read More- Rajasthan Ecotourism Policy 2021 | राजस्थान ईको टूरिज्म पाॅलिसी 2021

संरक्षण के प्रयास

संरक्षण के प्रति राजस्थान की प्रतिबद्धता इसके संरक्षित क्षेत्रों के व्यापक नेटवर्क के माध्यम से स्पष्ट है। ये पार्क और अभयारण्य राज्य की प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने और कई प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन क्षेत्रों के संरक्षण और प्रबंधन को बढ़ाने, सतत पर्यटन और वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जाते हैं।

निष्कर्ष

राजस्थान के राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य राज्य की समृद्ध प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता की झलक पेश करते हैं। भरतपुर में पक्षी देखने वालों के आनंद से लेकर रणथंभौर के राजसी बाघों तक, ये संरक्षित क्षेत्र राजस्थान के अपने वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति समर्पण के प्रमाण हैं। चाहे आप एक उत्साही प्रकृति प्रेमी हों या बस एक शांत छुट्टी की तलाश में हों, ये पार्क और अभयारण्य एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करते हैं।

अधिक जानकारी के लिए, आप राजस्थान वन विभाग की वेबसाइट पर जा सकते हैं।

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City | रैंक साइज़ नियम एवं प्राथमिक शहर का सिद्धांत

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City: शहरी भूगोल और शहर नियोजन के अध्ययन में, दो महत्वपूर्ण अवधारणाएँ अक्सर सामने आती हैं: रैंक-साइज़ नियम और प्राइमेट सिटी का नियम। ये सिद्धांत देश के भीतर शहरों की पदानुक्रमित संरचना और एक शहर के अन्य शहरों पर प्रभुत्व के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। शहरी विकास, संसाधन आवंटन और बुनियादी ढाँचे की योजना के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए शहरी योजनाकारों, भूगोलवेत्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए इन अवधारणाओं को समझना महत्वपूर्ण है।

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City: The Rank-Size Rule

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City: रैंक-साइज़ नियम, जिसे जिप्फ़ का नियम भी कहा जाता है, किसी देश के शहरों की जनसंख्या के आकार के बीच एक सांख्यिकीय संबंध है। रैंक-साइज़ नियम, जिसे जिप्फ़ का नियम भी कहा जाता है, 1940 के दशक में अमेरिकी भाषाविद् और भाषाशास्त्री जॉर्ज जिप्फ़ द्वारा तैयार किया गया था। यह मानता है कि किसी शहर की जनसंख्या शहरों के पदानुक्रम में उसके रैंक के व्युत्क्रमानुपाती होती है। सरल शब्दों में, दूसरे सबसे बड़े शहर की आबादी सबसे बड़े शहर की आधी होगी, तीसरे सबसे बड़े शहर की आबादी सबसे बड़े शहर की एक तिहाई होगी, और इसी तरह।

ReadMore- UGC NET GEOGRAPHY SYLLABUS 2024 | यूजीसी नेट भूगोल(Geography) पाठ्यक्रम 2024: संपूर्ण जानकारी

Formula and Example

The formula for the Rank-Size Rule is:

[ P_n = \frac{P_1}{n} ]

where:

  • ( P_n ) nवें शहर की जनसंख्या है( Pn is the population of the nth city).
  • ( P_1 ) सबसे बड़े शहर की जनसंख्या है(P1 is the population of the largest city).
  • ( n ) शहर का रैंक है।(n is the rank of the city).

उदाहरण के लिए, यदि किसी देश के सबसे बड़े शहर की जनसंख्या 1,000,000 है:

दूसरे सबसे बड़े शहर की जनसंख्या लगभग 500,000 होगी।

तीसरे सबसे बड़े शहर की जनसंख्या लगभग 333,333 होगी।

चौथे सबसे बड़े शहर की जनसंख्या लगभग 250,000 होगी।

यह पैटर्न शहर के आकार के संतुलित वितरण का सुझाव देता है और अक्सर ऐसा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अच्छी तरह से विकसित शहरी नेटवर्क वाले देशों में देखा जाता है।

रैंक-साइज़ नियम के निहितार्थ

आर्थिक दक्षता: शहर के आकार का संतुलित वितरण अधिक कुशल आर्थिक गतिविधियों और संसाधन वितरण को जन्म दे सकता है। व्यवसाय और सेवाएँ फैली हुई हैं, जिससे एक ही क्षेत्र में अत्यधिक संकेन्द्रण को रोका जा सकता है।

शहरी नियोजन: शहरी योजनाकार भविष्य के शहरी विकास की भविष्यवाणी करने और तदनुसार बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों के लिए योजना बनाने के लिए रैंक-साइज़ नियम का उपयोग कर सकते हैं।

सामाजिक सेवाएँ: एक संतुलित शहर पदानुक्रम सामाजिक सेवाओं के बेहतर प्रावधान की ओर ले जा सकता है, क्योंकि संसाधनों पर एक विशेष क्षेत्र में अत्यधिक दबाव नहीं पड़ता है।

The Law of the Primate City

रैंक-साइज़ नियम के विपरीत, प्राइमेट सिटी का नियम देश के शहरी पदानुक्रम में एक ही शहर के प्रभुत्व को उजागर करता है। प्राइमेट सिटी का नियम 1939 में अमेरिकी भूगोलवेत्ता मार्क जेफरसन द्वारा प्रस्तावित किया गया था। प्राइमेट शहर देश के किसी भी अन्य शहर की तुलना में काफी बड़ा और अधिक प्रभावशाली होता है। यह शहर अक्सर राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में कार्य करता है, जो अन्य सभी शहरों को पीछे छोड़ देता है।

Read More- Spykmans Rimland Theory: रिमलैंड सिद्धांत

Characteristics of a Primate City

  1. अनुपातहीन आकार: प्राइमेट शहर देश के दूसरे सबसे बड़े शहर से कम से कम दोगुना बड़ा है।
  2. केंद्रीकरण: प्राइमेट शहर में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ अत्यधिक केंद्रीकृत हैं।
  3. बुनियादी ढाँचा: प्राइमेट शहर में आम तौर पर बेहतर बुनियादी ढाँचा होता है, जिसमें परिवहन नेटवर्क, स्वास्थ्य सुविधाएँ और शैक्षणिक संस्थान शामिल हैं।

प्राइमेट शहरों के उदाहरण

बैंकॉक, थाईलैंड: बैंकॉक प्राइमेट शहर का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसकी आबादी थाईलैंड के किसी भी अन्य शहर से कहीं ज़्यादा है। यह राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है।

पेरिस, फ्रांस: पेरिस फ्रांस में शहरी पदानुक्रम पर हावी है, जिसका देश के आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव है।

मेक्सिको सिटी, मेक्सिको: मेक्सिको सिटी एक और उदाहरण है, जो मेक्सिको के किसी भी अन्य शहर की तुलना में बहुत बड़ा और अधिक प्रभावशाली है।

प्राइमेट सिटी के नियम के निहितार्थ

संसाधन आवंटन: प्राइमेट सिटी में संसाधनों और निवेशों की एकाग्रता अन्य शहरों की उपेक्षा का कारण बन सकती है, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय असमानताएँ हो सकती हैं।

शहरी चुनौतियाँ: प्राइमेट शहरों को अक्सर अपनी बड़ी आबादी और केंद्रित गतिविधियों के कारण यातायात की भीड़, प्रदूषण और उच्च जीवन लागत जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

आर्थिक निर्भरता: राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था प्राइमेट सिटी पर अत्यधिक निर्भर हो सकती है, जिससे वह उस शहर में आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाती है।

दोनों अवधारणाओं की तुलना

जबकि रैंक-साइज़ नियम और प्राइमेट सिटी का नियम दोनों ही शहरी पदानुक्रमों का वर्णन करते हैं, वे विपरीत शहरी संरचनाएँ प्रस्तुत करते हैं। रैंक-साइज़ नियम एक संतुलित और कुशल शहरी प्रणाली का सुझाव देता है, जबकि प्राइमेट सिटी का नियम एक अत्यधिक केंद्रीकृत और संभवतः असंतुलित प्रणाली को इंगित करता है।

लाभ और हानियाँ

रैंक-साइज़ नियम:

लाभ: संतुलित विकास, कुशल संसाधन वितरण, एकल शहरी केंद्रों पर कम दबाव।

नुकसान: अधिक व्यापक अवसंरचना नेटवर्क की आवश्यकता हो सकती है, संभावित रूप से उच्च प्रशासनिक लागत।

प्राइमेट सिटी का नियम:

लाभ: केंद्रीकृत संसाधन और निवेश, संभावित रूप से मजबूत वैश्विक शहर की उपस्थिति।

नुकसान: क्षेत्रीय असमानताएँ, शहरी भीड़भाड़, और एक ही शहर पर अत्यधिक निर्भरता।

निष्कर्ष

रैंक-साइज़ नियम और प्राइमेट सिटी का कानून शहरी पदानुक्रम और देश के भीतर शहरों के वितरण को समझने के लिए मूल्यवान रूपरेखा प्रदान करते हैं। जबकि रैंक-साइज़ नियम एक संतुलित और न्यायसंगत शहरी नेटवर्क को बढ़ावा देता है, प्राइमेट सिटी का कानून एक ही शहर के प्रभुत्व और प्रभाव को उजागर करता है। नीति निर्माताओं और शहरी योजनाकारों को टिकाऊ और समावेशी शहरी विकास रणनीतियाँ बनाने के लिए इन अवधारणाओं पर विचार करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बड़े और छोटे दोनों शहर फल-फूल सकें।

UGC NET GEOGRAPHY SYLLABUS 2024

UGC NET GEOGRAPHY SYLLABUS 2024 | यूजीसी नेट भूगोल(Geography) पाठ्यक्रम 2024: संपूर्ण जानकारी

UGC NET GEOGRAPHY SYLLABUS 2024 | यूजीसी नेट भूगोल(Geography) पाठ्यक्रम 2024: यूजीसी नेट भूगोल परीक्षा का उद्देश्य उच्च शिक्षा में अध्यापन और अनुसंधान के लिए योग्य उम्मीदवारों का चयन करना है। इस परीक्षा में दो पेपर होते हैं: पेपर I और पेपर II, जिनमें कुल 150 प्रश्न होते हैं और समय सीमा 3 घंटे की होती है। पेपर I में 50 प्रश्न और पेपर II में 100 प्रश्न होते हैं, प्रत्येक सही उत्तर के लिए 2 अंक मिलते हैं और गलत उत्तर के लिए कोई नकारात्मक अंक नहीं होता है।

UGC NET GEOGRAPHY SYLLABUS 2024 | यूजीसी नेट भूगोल(Geography) पाठ्यक्रम 2024:

यूनिट I: भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology)

  • महाद्वीपीय विस्थापन, प्लेट टेक्टोनिक्स, अंतर्जात और बहिर्जात बल।
  • अपरदन और मौसमरण, भू-आकृतिक चक्र (डेविस और पेनक)।

यूनिट II: जलवायुविज्ञान (Climatology)

  • वायुमंडल की संरचना और रचना; सौर विकिरण, पृथ्वी की ताप बजट, तापमान, दबाव और वायु, वायुमंडलीय परिसंचरण (वायु-द्रव्यमान, मोर्चे और उच्च वायु परिसंचरण, चक्रवात और प्रतिचक्रवात)।

यूनिट III: महासागर विज्ञान (Oceanography)

  • महासागरों का राहत, तापमान, घनत्व और लवणता की संरचना; गर्म और ठंडे धाराओं का परिसंचरण, लहरें, ज्वार, समुद्र स्तर परिवर्तन, सुनामी और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएँ।

यूनिट IV: पर्यावरण भूगोल (Geography of Environment)

  • पारिस्थितिकी तंत्र और मानव पारिस्थितिकी, राष्ट्रीय कार्यक्रम और नीतियाँ, कानूनी ढांचा, पर्यावरण नीति, अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और कार्यक्रम।

यूनिट V: जनसंख्या और बस्ती भूगोल (Population and Settlement Geography)

  • जनसंख्या भूगोल, बस्ती भूगोल, ग्रामीण बस्तियाँ।

यूनिट VI: आर्थिक गतिविधियाँ और क्षेत्रीय विकास (Geography of Economic Activities and Regional Development)

  • आर्थिक भूगोल, कृषि भूगोल, औद्योगिक भूगोल, क्षेत्रीय विकास और विश्व क्षेत्रीय असमानताएँ।

यूनिट VII: सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक भूगोल (Cultural, Social and Political Geography)

  • सांस्कृतिक और सामाजिक भूगोल, राजनीतिक भूगोल, सीमाएँ और सीमांत क्षेत्र, हार्टलैंड और रिमलैंड सिद्धांत।

यूनिट VIII: भूगोलिक विचार (Geographic Thought)

  • यूनानी, रोमन, अरब, चीनी और भारतीय विद्वानों का योगदान, भूगोलिक परंपराएँ और द्वैतवाद।

यूनिट IX: भूगोलिक तकनीकें (Geographical Techniques)

  • भूगोलिक जानकारी के स्रोत और डेटा, मानचित्रण तकनीकें, जीआईएस, रिमोट सेंसिंग और जीपीएस।

यूनिट X: भारत का भूगोल (Geography of India)

  • प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र और उनकी विशेषताएँ, जल निकासी प्रणाली, जलवायु, प्राकृतिक संसाधनों का प्रकार और वितरण।

UGC NET GEOGRAPHY SYLLABUS 2024 | यूजीसी नेट भूगोल(Geography) पाठ्यक्रम 2024: यूजीसी नेट भूगोल परीक्षा के विस्तृत पाठ्यक्रम को समझने के लिए, उम्मीदवारों को उपरोक्त सभी इकाइयों को अच्छी तरह से पढ़ना चाहिए। इन इकाइयों में पूछे जाने वाले विषयों और उपविषयों की गहन जानकारी से ही परीक्षा में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

पाठ्यक्रम के विस्तृत विवरण और PDF डाउनलोड के लिए आप UGC NET Geography Syllabus 2024 पर जा सकते हैं।

स्रोत

World Lakes Continent Wise

World Lakes Continent Wise | विश्व की प्रमुख झीलें महाद्वीपवार

World Lakes Continent Wise | विश्व की प्रमुख झीलें महाद्वीपवार : एशिया

बैकल झील (Baikal Lake)

  • स्थान: रूस
  • क्षेत्रफल: 31,500 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: दुनिया की सबसे गहरी मीठे पानी की झील (1,642 मीटर)

कैस्पियन सागर (Caspian Sea)

  • स्थान: एशिया और यूरोप की सीमा
  • क्षेत्रफल: 371,000 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: दुनिया की सबसे बड़ी बंद झील

World Lakes Continent Wise | विश्व की प्रमुख झीलें महाद्वीपवार : अफ्रीका

विक्टोरिया झील (Lake Victoria)

  • स्थान: तंजानिया, युगांडा, केन्या
  • क्षेत्रफल: 68,800 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: अफ्रीका की सबसे बड़ी झील

टांगानिका झील (Lake Tanganyika)

  • स्थान: तंजानिया, कांगो, बुरुंडी, जाम्बिया
  • क्षेत्रफल: 32,900 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: दुनिया की दूसरी सबसे गहरी झील (1,470 मीटर)

World Lakes Continent Wise | विश्व की प्रमुख झीलें महाद्वीपवार : उत्तरी अमेरिका

सुपीरियर झील (Lake Superior)

  • स्थान: अमेरिका और कनाडा
  • क्षेत्रफल: 82,100 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: दुनिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील

मिशिगन झील (Lake Michigan)

  • स्थान: अमेरिका
  • क्षेत्रफल: 58,000 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: पूरी तरह से अमेरिका में स्थित एकमात्र महान झील

World Lakes Continent Wise | विश्व की प्रमुख झीलें महाद्वीपवार : दक्षिण अमेरिका

टिटिकाका झील (Lake Titicaca)

  • स्थान: पेरू और बोलिविया
  • क्षेत्रफल: 8,372 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित नेविगेबल झील

मराकाइबो झील (Lake Maracaibo)

  • स्थान: वेनेजुएला
  • क्षेत्रफल: 13,210 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: दुनिया की सबसे पुरानी झीलों में से एक

World Lakes Continent Wise | विश्व की प्रमुख झीलें महाद्वीपवार : यूरोप

लडोगा झील (Lake Ladoga)

  • स्थान: रूस
  • क्षेत्रफल: 17,700 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: यूरोप की सबसे बड़ी झील

जिनेवा झील (Lake Geneva)

  • स्थान: स्विट्जरलैंड और फ्रांस
  • क्षेत्रफल: 580 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: यूरोप की सबसे बड़ी अल्पाइन झील

World Lakes Continent Wise | विश्व की प्रमुख झीलें महाद्वीपवार : ऑस्ट्रेलिया

एयर झील (Lake Eyre)

  • स्थान: दक्षिण ऑस्ट्रेलिया
  • क्षेत्रफल: 9,500 वर्ग किलोमीटर (बाढ़ के दौरान)
  • विशेषता: ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी और सबसे निचली बिंदु वाली झील

हीलियर झील (Lake Hillier)

  • स्थान: पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया
  • विशेषता: गुलाबी रंग की झील

अंटार्कटिका

वोस्तोक झील (Lake Vostok)

  • स्थान: पूर्वी अंटार्कटिका
  • क्षेत्रफल: 12,500 वर्ग किलोमीटर
  • विशेषता: दुनिया की सबसे बड़ी उपग्लेशियल झील

World Lakes Continent Wise | विश्व की प्रमुख झीलें महाद्वीपवार : निष्कर्ष

ये झीलें न केवल अपने विशाल क्षेत्रफल और गहराई के कारण महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे पर्यावरण, जैव विविधता और आर्थिक दृष्टिकोण से भी अहम हैं। इनकी भूगोलिक और पर्यावरणीय विशेषताएं इन्हें विश्व स्तर पर अद्वितीय बनाती हैं।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory)

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory): The theory of plate tectonics is the theory related to the movement of continents and oceans. In this the earth is considered to be divided into different plates. Terrestrial rigid land is called plate. The study related to the nature and flow of plates is called plate tectonics.
The theory of plate tectonics was propounded by Morgan and Isaac in 1965. McKenzie, Parker and Holmes are its main supporters.
In the theory of plate tectonics, the Earth's crust has been divided into several plates. These plates are made of lithosphere with a thickness of 100 km and float on the asthenosphere. So far 7 major and 20 minor plates have been detected.

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):PLATE TECTONICS THEORY | Major Plates

  • African plate
  • North American plate
  • South American plate
  • Antarctica plate
  • Indo Australian Plate
  • Eurasian plate
  • Pacific oceanic plate

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):PLATE TECTONICS THEORY | Minor Plates

  • Arabian Plate
  • Bismarck plate
  • Caribbean plate
  • Carolina plate
  • Cocos Plate
  • Juan de Fuca Plate
  • Nazca plate
  • Scottish plate
  • Indian plate
  • Persian plate
  • Anatolian Plate
  • China plate
  • Fuji plate
  • Somali Plate
  • Burmese Plate

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):PLATE TECTONICS THEORY | Types of Plate Margin

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):Plate Margins are most important from the geological point of view because earthquakes, volcanoes and other tectonic events take place with their help.

Generally plate Margins are divided into three classes –
1. Constructive Plate Margin – located above the upper facing pillars of two thermal convection waves. From here two plates move in the opposite direction from each other, due to which a rift is formed between the two and the magma of the asthenosphere comes up and a new crust is formed, hence it is called a constructive edge. The movement of plates along this edge is called divergent movement.
2. Destructive Plate Margin - located above the downward column of two thermal convection waves, due to which two plates move towards each other and the heavier plate is thrown below the lighter plate, due to which the crust is destroyed, hence it is called destructive plate edge. This area is called Benni off Zone.
3. Conservative Plate Margin - When two plates move parallel to each other, then such an edge is called a conservative margin. A transform fault is formed on their sides and earthquakes are experienced.

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):Reason for Plate Movement

  • The density of the Earth’s crust is less than that of the asthenosphere.
  • Convection waves generated in the mantle act as a source of heat for the movement of the plates.
  • Gravitational Slippery |
  • Rotation of the Earth and tidal friction caused by the Sun and the Moon.
  • Plumes or rising cylindrical waves.

Also Read

SSC CGL 2024

SSC CGL 2024: Notification (PDF), Application (Apply)Details | SSC CGL भर्ती परीक्षा 2024

SSC CGL 2024 Recruitment: An Overview

SSC CGL 2024: कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) ने संयुक्त स्नातक स्तरीय (सीजीएल) परीक्षा 2024 के लिए आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी है। यह प्रतिष्ठित परीक्षा भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में विभिन्न ग्रुप बी और ग्रुप सी पदों के लिए प्रवेश द्वार है। यहां एसएससी सीजीएल 2024 भर्ती प्रक्रिया के बारे में मुख्य विवरण दिए गए हैं:

SSC CGL 2024: The Staff Selection Commission (SSC) has released the official notification for the Combined Graduate Level (CGL) Examination 2024. This prestigious exam is a gateway to various Group B and Group C posts in different ministries and departments of the Government of India. Here are the key details about the SSC CGL 2024 recruitment process:

SSC CGL 2024: Important Dates

  • Notification Release Date: June 24, 2024
  • Application Start Date: June 24, 2024
  • Application End Date: July 24, 2024
  • Tier-I Exam Date: August-September 2024

SSC CGL 2024: Number of Posts

SSC CGL 2024: For the year 2024, the SSC CGL has announced a total of 17,727 vacancies across various categories and departments. This marks a significant increase from previous years, providing a great opportunity for aspirants.

SSC CGL 2024: Eligibility Criteria

  • Educational Qualification: A bachelor’s degree from a recognized university.
  • Age Limit: Varies by post, generally between 18 to 32 years. Specific details are:
  • Group C Posts: 18-27 years
  • Group B Posts: 18-30 years, with some posts requiring up to 32 years.

SSC CGL 2024: Exam Pattern

The SSC CGL 2024 examination will be conducted in two tiers:

  1. Tier-I:
  • Mode: Computer-Based Test (CBT)
  • Type: Objective Multiple Choice
  • Subjects: General Intelligence and Reasoning, General Awareness, Quantitative Aptitude, English Comprehension
  • Duration: 60 minutes
  1. Tier-II:
  • Mode: Computer-Based Test (CBT)
  • Papers:
    • Paper I: Compulsory for all posts
    • Paper II: For Junior Statistical Officer (JSO)
    • Paper III: For Assistant Audit Officer and Assistant Accounts Officer
  • For More Details Click Here

SSC CGL 2024: Selection Process

  • Tier-I Examination: Qualifying in nature, and the marks will not be included in the final results.
  • Tier-II Examination: Comprises multiple papers based on the post applied for.
  • Candidates must qualify in Tier-I to be eligible for Tier-II.

For more Details Click Here

SSC CGL 2024: Application Process

SSC CGL 2024: Candidates can apply online through the official SSC website. The application fee can be paid via SBI challan or online through net banking, credit, or debit card.

SSC CGL 2024: Syllabus

The syllabus for both Tier-I and Tier-II includes a mix of quantitative, reasoning, English, and general awareness topics. Detailed syllabus information can be found on the official SSC website (Click Here) .

SSC CGL 2024: Conclusion

The SSC CGL 2024 provides a robust opportunity for graduates to secure a prestigious government job. With a significant number of vacancies and a streamlined selection process, candidates are encouraged to prepare diligently to maximize their chances of success.

For more detailed information, including detailed eligibility criteria and the complete syllabus, please refer to the official notification on the SSC website.

Disclaimer: Exact Dates may vary depending on decisions made by corresponding authorities. So keep Visiting official website time to time.

indian monsoon

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: शास्त्रीय सिद्धांत, जेट स्ट्रीम और अन्य सिद्धांत

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: भारतीय मानसून एक जटिल और महत्त्वपूर्ण मौसम प्रणाली है जो भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा का मुख्य स्रोत है। यह प्रणाली मुख्य रूप से दो चरणों में विभाजित होती है: दक्षिण-पश्चिम मानसून और उत्तर-पूर्व मानसून। भारतीय मानसून के पीछे कई सिद्धांत और तंत्र कार्य करते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम शास्त्रीय सिद्धांत, जेट स्ट्रीम और अन्य सिद्धांतों की चर्चा करेंगे।

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: शास्त्रीय सिद्धांत

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: शास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार, मानसून की उत्पत्ति और विकास तीन प्रमुख तत्त्वों पर निर्भर करता है:

  1. भूमि और सागर तापमान का अंतर: गर्मी के मौसम में भारतीय उपमहाद्वीप तेजी से गर्म होता है जबकि महासागर अपेक्षाकृत ठंडा रहता है। यह तापमान अंतर एक निम्न दाब प्रणाली को जन्म देता है जो समुद्री हवाओं को भूमि की ओर खींचता है।
  2. हिमालय का प्रभाव: हिमालय पर्वत श्रृंखला एक प्राकृतिक अवरोधक का कार्य करती है, जो मानसून हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप की ओर मोड़ती है।
  3. इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (ITCZ): यह एक क्षेत्र है जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक हवाएं मिलती हैं, जिससे उष्णकटिबंधीय चक्रवात और मानसून हवाएं उत्पन्न होती हैं।

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: जेट स्ट्रीम सिद्धांत

जेट स्ट्रीम उच्च ऊँचाई पर तेज़ बहने वाली वायुमंडलीय धाराएँ होती हैं। मानसून के विकास में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है:

  1. ट्रॉपिकल ईस्टरली जेट (TEJ): यह जेट स्ट्रीम भूमध्य रेखा के पास पाई जाती है और भारतीय मानसून को सक्रिय करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
  2. सबट्रॉपिकल वेस्टरली जेट (STJ): यह जेट स्ट्रीम हिमालय के ऊपर बहती है और मानसून के समय अपनी स्थिति बदलकर उत्तर की ओर खिसक जाती है, जिससे मानसून हवाओं का प्रवाह सुगम होता है।

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: अन्य सिद्धांत

  1. इंडियन ओशन डिपोल (IOD): यह भारतीय महासागर के पश्चिमी और पूर्वी भागों के सतह तापमान के अंतर को दर्शाता है। सकारात्मक IOD स्थिति में, पश्चिमी भाग गर्म होता है और पूर्वी भाग ठंडा, जिससे भारत में अधिक वर्षा होती है।
  2. एल नीनो और ला नीना: प्रशांत महासागर की यह घटनाएँ भारतीय मानसून पर व्यापक प्रभाव डालती हैं। एल नीनो के समय भारतीय मानसून कमजोर पड़ता है जबकि ला नीना के समय यह मजबूत होता है।
  3. मानसून ट्रफ: यह निम्न दबाव की एक रेखा है जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग से बंगाल की खाड़ी तक फैली होती है। यह ट्रफ मानसून के दौरान पश्चिम की ओर बढ़ती है और भारी वर्षा का कारण बनती है।
  4. पश्चिमी विक्षोभ: यह पश्चिम से आने वाली ठंडी हवाएँ होती हैं जो हिमालय से टकराकर भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा लाती हैं। ये विशेषकर उत्तर-पश्चिमी भारत में सर्दियों में प्रभावी होती हैं।

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: निष्कर्ष

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: भारतीय मानसून एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें अनेक तत्त्व और सिद्धांत शामिल हैं। भूमि और सागर तापमान का अंतर, हिमालय का प्रभाव, जेट स्ट्रीम, इंडियन ओशन डिपोल, एल नीनो और ला नीना, मानसून ट्रफ और पश्चिमी विक्षोभ जैसे कारक भारतीय मानसून के स्वरूप और तीव्रता को निर्धारित करते हैं। इन सभी तत्त्वों की समझ हमें मानसून की बेहतर भविष्यवाणी और प्रबंधन में सहायता करती है, जो भारतीय कृषि और जल संसाधनों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

Cumulative Causation Model |क्षेत्रीय योजना में संचयी कारण मॉडल (Cumulative Causation Model)

Cumulative Causation Model परिचय

Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल (Cumulative Causation Model) एक आर्थिक सिद्धांत है जिसे स्वीडिश अर्थशास्त्री गुन्नार मिर्डल ने प्रस्तुत किया था। इस मॉडल का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि किस प्रकार से आर्थिक और सामाजिक प्रक्रियाएं एक क्षेत्र में विकास और पिछड़ेपन को संचालित करती हैं। क्षेत्रीय योजना में, यह मॉडल बताता है कि किस प्रकार से विभिन्न आर्थिक गतिविधियाँ एक दूसरे पर प्रभाव डालती हैं और कैसे यह प्रभाव समय के साथ संचयी (cumulative) होता है।

Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल की अवधारणा

Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल इस सिद्धांत पर आधारित है कि आर्थिक विकास एक स्व-स्थायी प्रक्रिया है। इसका मतलब यह है कि एक बार जब कोई क्षेत्र आर्थिक विकास की राह पर चल पड़ता है, तो वहां के विकास की गति बढ़ती जाती है और यह विकास अन्य क्षेत्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। इस प्रक्रिया को समझने के लिए, हमें कुछ मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना होगा:

  1. प्राथमिक कारण (Primary Causes): यह वे प्रारंभिक आर्थिक गतिविधियाँ हैं जो किसी क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया शुरू करती हैं, जैसे कि नई फैक्ट्रियों की स्थापना, बुनियादी ढांचे का विकास आदि।
  2. सहायक कारण (Supporting Causes): यह वे अतिरिक्त गतिविधियाँ हैं जो प्राथमिक कारणों को सहायता प्रदान करती हैं, जैसे कि बेहतर परिवहन सुविधाएँ, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार, आदि।
  3. सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ (Positive Feedbacks): यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों में भी विकास को प्रेरित करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, तो यह अन्य क्षेत्रों से मजदूरों को आकर्षित करेगा, जिससे वहां की आर्थिक गतिविधियाँ और बढ़ेंगी।

Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल का प्रभाव

  1. आर्थिक विकास और असमानता: संचयी कारण मॉडल यह बताता है कि किस प्रकार से आर्थिक विकास की प्रक्रिया असमानता को जन्म देती है। जब कोई क्षेत्र विकास की राह पर होता है, तो वहां के संसाधन और अवसर बढ़ते हैं, जिससे अन्य पिछड़े क्षेत्रों की तुलना में उस क्षेत्र में अधिक आर्थिक गतिविधियाँ होती हैं। इससे क्षेत्रीय असमानता बढ़ती है।
  2. विपरीत प्रभाव (Backwash Effects): संचयी कारण मॉडल का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि विकासशील क्षेत्रों की सफलता अन्य पिछड़े क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी क्षेत्र में अधिक रोजगार के अवसर होते हैं, तो अन्य क्षेत्रों से लोग वहां पलायन करने लगते हैं, जिससे उन पिछड़े क्षेत्रों की स्थिति और भी खराब हो जाती है।
  3. संतुलित विकास की आवश्यकता: संचयी कारण मॉडल यह भी इंगित करता है कि क्षेत्रीय योजना में संतुलित विकास की आवश्यकता है। यदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से विकास नहीं होता है, तो यह असमानता और सामाजिक तनाव को जन्म दे सकता है। इसलिए, योजना निर्माताओं को इस मॉडल के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर संतुलित विकास की रणनीतियाँ बनानी चाहिए।

निष्कर्ष

संचयी कारण मॉडल क्षेत्रीय योजना में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो आर्थिक और सामाजिक विकास की प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है। यह मॉडल बताता है कि किस प्रकार से एक क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करता है और कैसे यह प्रक्रिया समय के साथ संचयी हो जाती है। इसके माध्यम से, योजना निर्माताओं को यह समझने में मदद मिलती है कि विकास को संतुलित और समग्र तरीके से कैसे आगे बढ़ाया जाए, ताकि क्षेत्रीय असमानता को कम किया जा सके और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके।


इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से, संचयी कारण मॉडल की विस्तृत जानकारी और इसके क्षेत्रीय योजना में उपयोगिता को समझने का प्रयास किया गया है। उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।

Himalayan Drainage System

Himalayan Drainage System: हिमालय की अपवाह प्रणाली

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: हिमालय की अपवाह प्रणाली: एक विस्तृत अवलोकन

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: भारतीय उपमहाद्वीप विशाल और जटिल जल निकासी प्रणाली से धन्य है जो देश के भूगोल, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ इस प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो कृषि, पेयजल और जलविद्युत शक्ति के माध्यम से लाखों जीवन को समर्थन देती हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम हिमालय की जल निकासी प्रणाली की प्रमुख नदियों, उनके उद्गम स्थलों, जिन राज्यों से वे बहती हैं, उनकी लंबाई और दिशा के बारे में विस्तार से जानेंगे।

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: प्रमुख हिमालयी नदियाँ

हिमालय की नदियों को मुख्य रूप से तीन नदी प्रणालियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र। इनमें से प्रत्येक नदी प्रणाली में कई महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ शामिल हैं जो उनकी धारा में योगदान देती हैं।

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: 1. सिंधु नदी प्रणाली

सिंधु नदी

  • उद्गम: तिब्बत के मानसरोवर झील के पास
  • राज्य: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब (पाकिस्तान), सिंध (पाकिस्तान)
  • लंबाई: लगभग 3,180 किमी
  • दिशा: जम्मू और कश्मीर से उत्तर-पश्चिम दिशा में पाकिस्तान में प्रवेश करती है

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: मुख्य सहायक नदियाँ:

  • झेलम: जम्मू और कश्मीर के वेरिनाग स्रोत से निकलती है।
  • चिनाब: हिमाचल प्रदेश में चंद्र और भागा नदियों के संगम से बनती है।
  • रावी: हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के पास से निकलती है।
  • ब्यास: हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के पास ब्यास कुंड से निकलती है।
  • सतलुज: तिब्बत के राक्षसताल झील से निकलती है, हिमाचल प्रदेश और पंजाब से बहती है।

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: 2. गंगा नदी प्रणाली

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: गंगा नदी

  • उद्गम: उत्तराखंड के गंगोत्री ग्लेशियर से
  • राज्य: उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल
  • लंबाई: लगभग 2,525 किमी
  • दिशा: हिमालय से दक्षिण-पूर्व दिशा में बंगाल की खाड़ी तक

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: मुख्य सहायक नदियाँ:

  • यमुना: उत्तराखंड के यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से बहती है।
  • घाघरा: तिब्बत के गुरला मंधाता चोटी के पास से निकलती है, नेपाल, उत्तर प्रदेश और बिहार से बहती है।
  • गंडक: नेपाल हिमालय से निकलती है, नेपाल, उत्तर प्रदेश और बिहार से बहती है।
  • कोसी: तिब्बती पठार से निकलती है और नेपाल और बिहार से बहती है।
  • सोन: मध्य प्रदेश के अमरकंटक के पास से निकलती है, उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार से बहती है।

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: 3. ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: ब्रह्मपुत्र नदी

  • उद्गम: तिब्बत के चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से
  • राज्य: अरुणाचल प्रदेश, असम
  • लंबाई: लगभग 2,900 किमी
  • दिशा: तिब्बत में पूर्व दिशा में, अरुणाचल प्रदेश में दक्षिण में मुड़कर, फिर पश्चिम और दक्षिण में असम के माध्यम से बहती है

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: मुख्य सहायक नदियाँ:

  • सुबनसिरी: तिब्बत से निकलती है और अरुणाचल प्रदेश और असम से बहती है।
  • मानस: भूटान से निकलती है और असम से बहती है।
  • तीस्ता: सिक्किम के त्सो ल्हामो झील से निकलती है, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से बहती है।
  • धनसिरी: नागालैंड से निकलती है और असम से बहती है।
  • दिबांग: अरुणाचल प्रदेश से निकलती है और असम में ब्रह्मपुत्र से मिलती है।
  • लोहित: तिब्बत से निकलती है, अरुणाचल प्रदेश से बहती है और असम में ब्रह्मपुत्र से मिलती है।

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: हिमालयी नदियों की विशेषताएँ

  1. सदैव प्रवाहमान: हिमालयी नदियाँ सदैव प्रवाहमान रहती हैं, इन्हें वर्षा और ग्लेशियरों से पिघलने वाली बर्फ से पोषण मिलता है, जिससे साल भर निरंतर प्रवाह बना रहता है।
  2. विशाल जलग्रहण क्षेत्र: इन नदियों का विशाल जलग्रहण क्षेत्र है जो कई राज्यों और यहाँ तक कि देशों में फैला हुआ है।
  3. उच्च अवसाद भार: हिमालय के युवा वलित पर्वतों के कारण, ये नदियाँ उच्च अवसाद भार ले जाती हैं, जो नीचे की ओर उपजाऊ मैदानों में योगदान देता है।
  4. जलविद्युत क्षमता: इन नदियों के ऊपरी हिस्सों में खड़ी ढलानें इन्हें जलविद्युत उत्पादन के लिए आदर्श बनाती हैं।
  5. बाढ़: मानसून के मौसम में, ये नदियाँ अक्सर मैदानी इलाकों में बाढ़ का कारण बनती हैं, जिससे कृषि और बस्तियों पर प्रभाव पड़ता है।

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: निष्कर्ष

Himalayan Drainage System | हिमालय की अपवाह प्रणाली: हिमालयी नदी प्रणालियाँ भारतीय उपमहाद्वीप की जीवनरेखाएँ हैं, जो भूगोल को आकार देने और लाखों लोगों की आजीविका का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन नदी प्रणालियों को समझना प्रभावी जल संसाधन प्रबंधन, आपदा तैयारी और सतत विकास के लिए आवश्यक है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन हिमालयी ग्लेशियरों को प्रभावित करता है, इन महत्वपूर्ण जल स्रोतों की निगरानी और प्रबंधन भविष्य की पीढ़ियों के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।