Rank-Size Rule and the Law of the Primate City

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City | रैंक साइज़ नियम एवं प्राथमिक शहर का सिद्धांत

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City: शहरी भूगोल और शहर नियोजन के अध्ययन में, दो महत्वपूर्ण अवधारणाएँ अक्सर सामने आती हैं: रैंक-साइज़ नियम और प्राइमेट सिटी का नियम। ये सिद्धांत देश के भीतर शहरों की पदानुक्रमित संरचना और एक शहर के अन्य शहरों पर प्रभुत्व के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। शहरी विकास, संसाधन आवंटन और बुनियादी ढाँचे की योजना के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए शहरी योजनाकारों, भूगोलवेत्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए इन अवधारणाओं को समझना महत्वपूर्ण है।

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City: The Rank-Size Rule

Rank-Size Rule and the Law of the Primate City: रैंक-साइज़ नियम, जिसे जिप्फ़ का नियम भी कहा जाता है, किसी देश के शहरों की जनसंख्या के आकार के बीच एक सांख्यिकीय संबंध है। रैंक-साइज़ नियम, जिसे जिप्फ़ का नियम भी कहा जाता है, 1940 के दशक में अमेरिकी भाषाविद् और भाषाशास्त्री जॉर्ज जिप्फ़ द्वारा तैयार किया गया था। यह मानता है कि किसी शहर की जनसंख्या शहरों के पदानुक्रम में उसके रैंक के व्युत्क्रमानुपाती होती है। सरल शब्दों में, दूसरे सबसे बड़े शहर की आबादी सबसे बड़े शहर की आधी होगी, तीसरे सबसे बड़े शहर की आबादी सबसे बड़े शहर की एक तिहाई होगी, और इसी तरह।

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Formula and Example

The formula for the Rank-Size Rule is:

[ P_n = \frac{P_1}{n} ]

where:

  • ( P_n ) nवें शहर की जनसंख्या है( Pn is the population of the nth city).
  • ( P_1 ) सबसे बड़े शहर की जनसंख्या है(P1 is the population of the largest city).
  • ( n ) शहर का रैंक है।(n is the rank of the city).

उदाहरण के लिए, यदि किसी देश के सबसे बड़े शहर की जनसंख्या 1,000,000 है:

दूसरे सबसे बड़े शहर की जनसंख्या लगभग 500,000 होगी।

तीसरे सबसे बड़े शहर की जनसंख्या लगभग 333,333 होगी।

चौथे सबसे बड़े शहर की जनसंख्या लगभग 250,000 होगी।

यह पैटर्न शहर के आकार के संतुलित वितरण का सुझाव देता है और अक्सर ऐसा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अच्छी तरह से विकसित शहरी नेटवर्क वाले देशों में देखा जाता है।

रैंक-साइज़ नियम के निहितार्थ

आर्थिक दक्षता: शहर के आकार का संतुलित वितरण अधिक कुशल आर्थिक गतिविधियों और संसाधन वितरण को जन्म दे सकता है। व्यवसाय और सेवाएँ फैली हुई हैं, जिससे एक ही क्षेत्र में अत्यधिक संकेन्द्रण को रोका जा सकता है।

शहरी नियोजन: शहरी योजनाकार भविष्य के शहरी विकास की भविष्यवाणी करने और तदनुसार बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों के लिए योजना बनाने के लिए रैंक-साइज़ नियम का उपयोग कर सकते हैं।

सामाजिक सेवाएँ: एक संतुलित शहर पदानुक्रम सामाजिक सेवाओं के बेहतर प्रावधान की ओर ले जा सकता है, क्योंकि संसाधनों पर एक विशेष क्षेत्र में अत्यधिक दबाव नहीं पड़ता है।

The Law of the Primate City

रैंक-साइज़ नियम के विपरीत, प्राइमेट सिटी का नियम देश के शहरी पदानुक्रम में एक ही शहर के प्रभुत्व को उजागर करता है। प्राइमेट सिटी का नियम 1939 में अमेरिकी भूगोलवेत्ता मार्क जेफरसन द्वारा प्रस्तावित किया गया था। प्राइमेट शहर देश के किसी भी अन्य शहर की तुलना में काफी बड़ा और अधिक प्रभावशाली होता है। यह शहर अक्सर राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में कार्य करता है, जो अन्य सभी शहरों को पीछे छोड़ देता है।

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Characteristics of a Primate City

  1. अनुपातहीन आकार: प्राइमेट शहर देश के दूसरे सबसे बड़े शहर से कम से कम दोगुना बड़ा है।
  2. केंद्रीकरण: प्राइमेट शहर में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ अत्यधिक केंद्रीकृत हैं।
  3. बुनियादी ढाँचा: प्राइमेट शहर में आम तौर पर बेहतर बुनियादी ढाँचा होता है, जिसमें परिवहन नेटवर्क, स्वास्थ्य सुविधाएँ और शैक्षणिक संस्थान शामिल हैं।

प्राइमेट शहरों के उदाहरण

बैंकॉक, थाईलैंड: बैंकॉक प्राइमेट शहर का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसकी आबादी थाईलैंड के किसी भी अन्य शहर से कहीं ज़्यादा है। यह राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है।

पेरिस, फ्रांस: पेरिस फ्रांस में शहरी पदानुक्रम पर हावी है, जिसका देश के आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव है।

मेक्सिको सिटी, मेक्सिको: मेक्सिको सिटी एक और उदाहरण है, जो मेक्सिको के किसी भी अन्य शहर की तुलना में बहुत बड़ा और अधिक प्रभावशाली है।

प्राइमेट सिटी के नियम के निहितार्थ

संसाधन आवंटन: प्राइमेट सिटी में संसाधनों और निवेशों की एकाग्रता अन्य शहरों की उपेक्षा का कारण बन सकती है, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय असमानताएँ हो सकती हैं।

शहरी चुनौतियाँ: प्राइमेट शहरों को अक्सर अपनी बड़ी आबादी और केंद्रित गतिविधियों के कारण यातायात की भीड़, प्रदूषण और उच्च जीवन लागत जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

आर्थिक निर्भरता: राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था प्राइमेट सिटी पर अत्यधिक निर्भर हो सकती है, जिससे वह उस शहर में आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाती है।

दोनों अवधारणाओं की तुलना

जबकि रैंक-साइज़ नियम और प्राइमेट सिटी का नियम दोनों ही शहरी पदानुक्रमों का वर्णन करते हैं, वे विपरीत शहरी संरचनाएँ प्रस्तुत करते हैं। रैंक-साइज़ नियम एक संतुलित और कुशल शहरी प्रणाली का सुझाव देता है, जबकि प्राइमेट सिटी का नियम एक अत्यधिक केंद्रीकृत और संभवतः असंतुलित प्रणाली को इंगित करता है।

लाभ और हानियाँ

रैंक-साइज़ नियम:

लाभ: संतुलित विकास, कुशल संसाधन वितरण, एकल शहरी केंद्रों पर कम दबाव।

नुकसान: अधिक व्यापक अवसंरचना नेटवर्क की आवश्यकता हो सकती है, संभावित रूप से उच्च प्रशासनिक लागत।

प्राइमेट सिटी का नियम:

लाभ: केंद्रीकृत संसाधन और निवेश, संभावित रूप से मजबूत वैश्विक शहर की उपस्थिति।

नुकसान: क्षेत्रीय असमानताएँ, शहरी भीड़भाड़, और एक ही शहर पर अत्यधिक निर्भरता।

निष्कर्ष

रैंक-साइज़ नियम और प्राइमेट सिटी का कानून शहरी पदानुक्रम और देश के भीतर शहरों के वितरण को समझने के लिए मूल्यवान रूपरेखा प्रदान करते हैं। जबकि रैंक-साइज़ नियम एक संतुलित और न्यायसंगत शहरी नेटवर्क को बढ़ावा देता है, प्राइमेट सिटी का कानून एक ही शहर के प्रभुत्व और प्रभाव को उजागर करता है। नीति निर्माताओं और शहरी योजनाकारों को टिकाऊ और समावेशी शहरी विकास रणनीतियाँ बनाने के लिए इन अवधारणाओं पर विचार करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बड़े और छोटे दोनों शहर फल-फूल सकें।

reference :- https://web.archive.org/web/20161216064048/http://geography.about.com/od/urbaneconomicgeography/a/primatecities.htm

Jet Stream

Jet Stream | जेट स्ट्रीम एवं इनके प्रकार

Jet Stream

Jet Stream जेट स्ट्रीम – ये क्षोभ सीमा के निकट पश्चिम से पूर्व चलने वाली अत्यधिक तीव्र गति की क्षेतिज पवने हैं | ये 150 किमी चौड़ी एवं 2 से 3 किमी मोटी एक संक्रमण पेटी के रूप में सक्रीय रहती हैं | इनकी गति 150 से 200 किमी प्रति घंटा होती है | क्रोड़ पर इनकी गति 325 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है |

जेट स्ट्रीम सामान्यतः उत्तरी गोलार्ध में ही मिलती हैं तथा दक्षिणी गोलार्ध में ये केवल दक्षिणी ध्रुव पर मिलती है | ये पश्चिम से पूर्व चलती हैं | इनकी उत्पत्ति का मुख्य कारण पृथ्वी की सतह पर तापमान में अंतर एवं उससे उत्पन्न दाब  प्रवणता है | प्रमुख कारण विषुवत रेखीय क्षेत्र एवं ध्रुवीय क्षेत्रो के मध्य उत्पन्न तापीय प्रवणता है | ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु के समय तापीय प्रवणता अधिक होने के कारण शीत ऋतु में जेट स्ट्रीम की तीव्रता भी अधिक हो जाती है |

दक्षिणी गोलार्ध में स्थलीय सतह का आभाव होने के कारण ताप प्रवणता कम होती है इसलिए जेट स्ट्रीम दक्षिणी गोलार्ध में कम स्थायी एवं उत्तरी गोलार्ध में अधिक स्थायी होती हैं |

भूमध्य रेखा से ध्रुवो की ओर क्षोभ सीमा की ऊंचाई में कमी होने के कारण जेट स्ट्रीम की ऊंचाई में भी कमी होती है |

Jet Stream | जेट स्ट्रीम के प्रकार  

  1. ध्रुवीय रात्रि जेट स्ट्रीम
  2. ध्रुवीय वताग्री जेट स्ट्रीम
  3. उपोष्ण पछुआ जेट स्ट्रीम
  4. उष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम

Jet Stream | ध्रुवीय रात्रि जेट स्ट्रीम

ये दोनों गोलार्धो में 60 डिग्री से उपरी अक्षांशो में मिलती हैं |

ध्रुवीय वाताग्री जेट स्ट्रीम

40-60 डिग्री उत्तरी अक्षांशो के मध्य 9 से 12 किमी की ऊंचाई पर मिलती है | इसका सम्बन्ध ध्रुवीय वाताग्रो से है ये तरंग उक्त असंगत पथ का अनुसरण करती हैं | इनकी गति 150-300 किमी प्रति घंटा एवं वायुदाब 200से 300 मिलिबार होता है | इन्हें रोस्बी तरंग भी कहा जाता है |

उपोष्ण कटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम

ये 30 से 35 डिग्री उत्तरी अक्षांशों के मध्य 10 से 14 किमी कि ऊंचाई पर मिलती हैं | इनकी गति 350 से 385 एवं वायुदाब 200 से 300 मिलिबार होता है | इनकी उत्पत्ति का मुख्य कारण विषुवतीय क्षेत्र में उच्च तापमान के कारण होने वाली संवहन क्रिया है | भारत में दिसंबर से फ़रवरी के मध्य पश्चिमी विक्षोभ के लिए यही जेट पवने उत्तरदायी हैं |

उष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम

अन्य जेट स्ट्रीम के विपरीत इसकी दिशा उत्तर पूर्वी होती है | ये केवल उत्तरी गोलार्ध में 25 डिग्री उत्तरी अक्षांश के पास ग्रीष्म कल में उत्पन्न होती हैं | 14 से 16 किमी की ऊंचाई पर इनकी उत्पत्ति 100 से 150 मिलिबार वायुदाब वाले क्षेत्रो में होती है |इनकी गति 180 किमी प्रति घंटा होती है | भारतीय मानसून कि उत्पत्ति के लिए यही जेट उत्तरदायी है |  


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क्रोड (Core)

जैसा कि पहले ही इंगित किया जा चुका है कि भूकंपीय तरंगों  ने पृथ्वी के क्रोड को समझने में सहायता की है। क्रोड व मैंटल की सीमा 2,900 कि0मी0 की गहराई पर है।  बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है जबकि आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में है। क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल व लोहे का बना है। इसे निफे  परत के नाम से भी जाना जाता है।


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Cumulative Causation Model |क्षेत्रीय योजना में संचयी कारण मॉडल (Cumulative Causation Model)

Cumulative Causation Model परिचय

Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल (Cumulative Causation Model) एक आर्थिक सिद्धांत है जिसे स्वीडिश अर्थशास्त्री गुन्नार मिर्डल ने प्रस्तुत किया था। इस मॉडल का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि किस प्रकार से आर्थिक और सामाजिक प्रक्रियाएं एक क्षेत्र में विकास और पिछड़ेपन को संचालित करती हैं। क्षेत्रीय योजना में, यह मॉडल बताता है कि किस प्रकार से विभिन्न आर्थिक गतिविधियाँ एक दूसरे पर प्रभाव डालती हैं और कैसे यह प्रभाव समय के साथ संचयी (cumulative) होता है।

Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल की अवधारणा

Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल इस सिद्धांत पर आधारित है कि आर्थिक विकास एक स्व-स्थायी प्रक्रिया है। इसका मतलब यह है कि एक बार जब कोई क्षेत्र आर्थिक विकास की राह पर चल पड़ता है, तो वहां के विकास की गति बढ़ती जाती है और यह विकास अन्य क्षेत्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। इस प्रक्रिया को समझने के लिए, हमें कुछ मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना होगा:

  1. प्राथमिक कारण (Primary Causes): यह वे प्रारंभिक आर्थिक गतिविधियाँ हैं जो किसी क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया शुरू करती हैं, जैसे कि नई फैक्ट्रियों की स्थापना, बुनियादी ढांचे का विकास आदि।
  2. सहायक कारण (Supporting Causes): यह वे अतिरिक्त गतिविधियाँ हैं जो प्राथमिक कारणों को सहायता प्रदान करती हैं, जैसे कि बेहतर परिवहन सुविधाएँ, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार, आदि।
  3. सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ (Positive Feedbacks): यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों में भी विकास को प्रेरित करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, तो यह अन्य क्षेत्रों से मजदूरों को आकर्षित करेगा, जिससे वहां की आर्थिक गतिविधियाँ और बढ़ेंगी।

Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल का प्रभाव

  1. आर्थिक विकास और असमानता: संचयी कारण मॉडल यह बताता है कि किस प्रकार से आर्थिक विकास की प्रक्रिया असमानता को जन्म देती है। जब कोई क्षेत्र विकास की राह पर होता है, तो वहां के संसाधन और अवसर बढ़ते हैं, जिससे अन्य पिछड़े क्षेत्रों की तुलना में उस क्षेत्र में अधिक आर्थिक गतिविधियाँ होती हैं। इससे क्षेत्रीय असमानता बढ़ती है।
  2. विपरीत प्रभाव (Backwash Effects): संचयी कारण मॉडल का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि विकासशील क्षेत्रों की सफलता अन्य पिछड़े क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी क्षेत्र में अधिक रोजगार के अवसर होते हैं, तो अन्य क्षेत्रों से लोग वहां पलायन करने लगते हैं, जिससे उन पिछड़े क्षेत्रों की स्थिति और भी खराब हो जाती है।
  3. संतुलित विकास की आवश्यकता: संचयी कारण मॉडल यह भी इंगित करता है कि क्षेत्रीय योजना में संतुलित विकास की आवश्यकता है। यदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से विकास नहीं होता है, तो यह असमानता और सामाजिक तनाव को जन्म दे सकता है। इसलिए, योजना निर्माताओं को इस मॉडल के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर संतुलित विकास की रणनीतियाँ बनानी चाहिए।

निष्कर्ष

संचयी कारण मॉडल क्षेत्रीय योजना में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो आर्थिक और सामाजिक विकास की प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है। यह मॉडल बताता है कि किस प्रकार से एक क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करता है और कैसे यह प्रक्रिया समय के साथ संचयी हो जाती है। इसके माध्यम से, योजना निर्माताओं को यह समझने में मदद मिलती है कि विकास को संतुलित और समग्र तरीके से कैसे आगे बढ़ाया जाए, ताकि क्षेत्रीय असमानता को कम किया जा सके और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके।


इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से, संचयी कारण मॉडल की विस्तृत जानकारी और इसके क्षेत्रीय योजना में उपयोगिता को समझने का प्रयास किया गया है। उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।

Spykmans Rimland Theory: रिमलैंड सिद्धांत

Spykmans Rimland Theory: रिमलैंड सिद्धांत, जो 20वीं सदी के मध्य में निकोलस स्पाइकमैन द्वारा प्रस्तावित किया गया था, भू-राजनीतिक अध्ययन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह यूरेशिया के तटीय क्षेत्रों की रणनीतिक महत्ता पर जोर देता है, जिसे स्पाइकमैन ने “रिमलैंड” कहा, और तर्क दिया कि वैश्विक राजनीतिक शक्ति के लिए यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। आइए इस सिद्धांत पर गहराई से नज़र डालें:

Spykmans Rimland Theory रिमलैंड सिद्धांत के मुख्य विचार

  1. भू-राजनीतिक संदर्भ: स्पाइकमैन का मानना था कि रिमलैंड, जिसमें पश्चिमी यूरोप, मध्य पूर्व और एशिया के तटीय क्षेत्र शामिल हैं, वैश्विक शक्ति गतिशीलता के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है। मैकिंडर के हार्टलैंड सिद्धांत के विपरीत, जो यूरेशिया के केंद्रीय भाग पर केंद्रित था, स्पाइकमैन का सिद्धांत यह मानता है कि रिमलैंड पर नियंत्रण वैश्विक प्रभुत्व के लिए महत्वपूर्ण है।
  2. रणनीतिक महत्ता: रिमलैंड हार्टलैंड (मध्य यूरेशिया) की स्थल शक्ति और बाहरी अर्धचंद्राकार (समुद्री राष्ट्र जैसे अमेरिका और ब्रिटेन) की समुद्री शक्ति के बीच एक बफर जोन बनाता है। रिमलैंड पर नियंत्रण एक राष्ट्र को महाद्वीपीय और समुद्री दोनों मामलों में प्रभावी बनाता है।
  3. नियंत्रण नीति: स्पाइकमैन के विचार शीत युद्ध के दौरान महत्वपूर्ण थे और अमेरिकी नियंत्रण नीति को प्रभावित करते थे। सिद्धांत ने सुझाव दिया कि सोवियत संघ के रिमलैंड क्षेत्रों में विस्तार को रोकना शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक होगा।

Spykmans Rimland Theory तीन प्रमुख क्षेत्र

Spykmans Rimland Theory स्पाइकमैन ने रिमलैंड को तीन रणनीतिक क्षेत्रों में विभाजित किया:

  • पश्चिमी यूरोपीय तटीय क्षेत्र: जिसमें स्कैंडेनेविया से लेकर भूमध्यसागर तक के तटीय क्षेत्र शामिल हैं।
  • मध्य पूर्वी अर्धचंद्राकार: जिसमें अरब प्रायद्वीप से लेकर ईरान और भारत तक का क्षेत्र शामिल है।
  • एशियाई रिम: जिसमें दक्षिण और पूर्वी एशिया के तटीय क्षेत्र शामिल हैं।

Spykmans Rimland Theory इन क्षेत्रों में से प्रत्येक को वैश्विक स्थिरता और शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण माना गया।

Spykmans Rimland Theory हार्टलैंड सिद्धांत के साथ तुलना

  • हार्टलैंड सिद्धांत (हैलफोर्ड मैकिंडर): यूरेशिया के केंद्रीय भाग को एक धुरी क्षेत्र के रूप में मानता है, जहां नियंत्रण से विश्व द्वीप (यूरेशिया और अफ्रीका) पर प्रभुत्व प्राप्त किया जा सकता है।
  • रिमलैंड सिद्धांत: तटीय क्षेत्रों को अधिक महत्वपूर्ण मानता है क्योंकि उनके पास समुद्रों तक पहुंच है और महत्वपूर्ण जनसंख्या केंद्र हैं, जो आर्थिक और सैन्य शक्ति के लिए आवश्यक हैं।

Spykmans Rimland Theory रिमलैंड सिद्धांत के प्रभाव

  • शीत युद्ध रणनीति: सिद्धांत ने यूरेशिया के तटों के आसपास अमेरिकी गठबंधनों और सैन्य ठिकानों की रणनीति को प्रभावित किया ताकि सोवियत प्रभाव को रोका जा सके।
  • आधुनिक भू-राजनीति: रिमलैंड अवधारणा अभी भी प्रासंगिक है, विशेषकर यूएस-चीन संबंधों के संदर्भ में, जहां दक्षिण चीन सागर पर नियंत्रण और हिंद महासागर में प्रभाव को महत्वपूर्ण रणनीतिक उद्देश्यों के रूप में देखा जाता है।

Spykmans Rimland Theory निष्कर्ष

Spykmans Rimland Theory रिमलैंड सिद्धांत वैश्विक रणनीति में तटीय क्षेत्रों की महत्ता को रेखांकित करता है और यूरेशिया के किनारों की भू-राजनीतिक महत्वपूर्णता को दर्शाता है। इस सिद्धांत को समझने से अतीत और वर्तमान की भू-राजनीतिक रणनीतियों और संघर्षों पर मूल्यवान अंतर्दृष्टि मिलती है।

indian monsoon

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: शास्त्रीय सिद्धांत, जेट स्ट्रीम और अन्य सिद्धांत

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: भारतीय मानसून एक जटिल और महत्त्वपूर्ण मौसम प्रणाली है जो भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा का मुख्य स्रोत है। यह प्रणाली मुख्य रूप से दो चरणों में विभाजित होती है: दक्षिण-पश्चिम मानसून और उत्तर-पूर्व मानसून। भारतीय मानसून के पीछे कई सिद्धांत और तंत्र कार्य करते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम शास्त्रीय सिद्धांत, जेट स्ट्रीम और अन्य सिद्धांतों की चर्चा करेंगे।

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: शास्त्रीय सिद्धांत

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: शास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार, मानसून की उत्पत्ति और विकास तीन प्रमुख तत्त्वों पर निर्भर करता है:

  1. भूमि और सागर तापमान का अंतर: गर्मी के मौसम में भारतीय उपमहाद्वीप तेजी से गर्म होता है जबकि महासागर अपेक्षाकृत ठंडा रहता है। यह तापमान अंतर एक निम्न दाब प्रणाली को जन्म देता है जो समुद्री हवाओं को भूमि की ओर खींचता है।
  2. हिमालय का प्रभाव: हिमालय पर्वत श्रृंखला एक प्राकृतिक अवरोधक का कार्य करती है, जो मानसून हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप की ओर मोड़ती है।
  3. इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (ITCZ): यह एक क्षेत्र है जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक हवाएं मिलती हैं, जिससे उष्णकटिबंधीय चक्रवात और मानसून हवाएं उत्पन्न होती हैं।

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: जेट स्ट्रीम सिद्धांत

जेट स्ट्रीम उच्च ऊँचाई पर तेज़ बहने वाली वायुमंडलीय धाराएँ होती हैं। मानसून के विकास में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है:

  1. ट्रॉपिकल ईस्टरली जेट (TEJ): यह जेट स्ट्रीम भूमध्य रेखा के पास पाई जाती है और भारतीय मानसून को सक्रिय करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
  2. सबट्रॉपिकल वेस्टरली जेट (STJ): यह जेट स्ट्रीम हिमालय के ऊपर बहती है और मानसून के समय अपनी स्थिति बदलकर उत्तर की ओर खिसक जाती है, जिससे मानसून हवाओं का प्रवाह सुगम होता है।

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: अन्य सिद्धांत

  1. इंडियन ओशन डिपोल (IOD): यह भारतीय महासागर के पश्चिमी और पूर्वी भागों के सतह तापमान के अंतर को दर्शाता है। सकारात्मक IOD स्थिति में, पश्चिमी भाग गर्म होता है और पूर्वी भाग ठंडा, जिससे भारत में अधिक वर्षा होती है।
  2. एल नीनो और ला नीना: प्रशांत महासागर की यह घटनाएँ भारतीय मानसून पर व्यापक प्रभाव डालती हैं। एल नीनो के समय भारतीय मानसून कमजोर पड़ता है जबकि ला नीना के समय यह मजबूत होता है।
  3. मानसून ट्रफ: यह निम्न दबाव की एक रेखा है जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग से बंगाल की खाड़ी तक फैली होती है। यह ट्रफ मानसून के दौरान पश्चिम की ओर बढ़ती है और भारी वर्षा का कारण बनती है।
  4. पश्चिमी विक्षोभ: यह पश्चिम से आने वाली ठंडी हवाएँ होती हैं जो हिमालय से टकराकर भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा लाती हैं। ये विशेषकर उत्तर-पश्चिमी भारत में सर्दियों में प्रभावी होती हैं।

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: निष्कर्ष

Indian Monsoon | भारतीय मानसून: भारतीय मानसून एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें अनेक तत्त्व और सिद्धांत शामिल हैं। भूमि और सागर तापमान का अंतर, हिमालय का प्रभाव, जेट स्ट्रीम, इंडियन ओशन डिपोल, एल नीनो और ला नीना, मानसून ट्रफ और पश्चिमी विक्षोभ जैसे कारक भारतीय मानसून के स्वरूप और तीव्रता को निर्धारित करते हैं। इन सभी तत्त्वों की समझ हमें मानसून की बेहतर भविष्यवाणी और प्रबंधन में सहायता करती है, जो भारतीय कृषि और जल संसाधनों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

Air mass

Air Mass : वायु राशि

Air Mass | वायु राशि: वायु द्रव्यमान जलवायु विज्ञान में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो एक बड़े वायु के हिस्से को दर्शाता है जिसमें तापमान और आर्द्रता समान होती है। ये द्रव्यमान विभिन्न क्षेत्रों में मौसम और जलवायु को प्रभावित करते हैं।

Air Mass | वायु राशि: वायु राशि का निर्माण

Air Mass | वायु राशि: वायु द्रव्यमान बड़े और समरूप क्षेत्रों में बनते हैं जिन्हें स्रोत क्षेत्र कहा जाता है। ये क्षेत्र आमतौर पर सपाट और समान होते हैं, जिससे वायु सतह की विशेषताएँ ग्रहण कर सकती है। प्रमुख स्रोत क्षेत्र निम्नलिखित हैं:

  • ध्रुवीय क्षेत्र: ठंडा और शुष्क वायु द्रव्यमान।
  • उष्णकटिबंधीय क्षेत्र: गर्म और आर्द्र वायु द्रव्यमान।
  • स्थलीय क्षेत्र: शुष्क वायु द्रव्यमान।
  • समुद्री क्षेत्र: आर्द्र वायु द्रव्यमान।

Air Mass | वायु राशि: वायु राशियों के प्रकार

Air Mass | वायु राशि: वायु राशी उनके तापमान और आर्द्रता के आधार पर वर्गीकृत किए जाते हैं, जो मुख्यतः पाँच प्रकार के होते हैं:

  1. समुद्री उष्णकटिबंधीय (mT): गर्म और आर्द्र, उष्णकटिबंधीय महासागरों पर बनते हैं।
  2. स्थलीय उष्णकटिबंधीय (cT): गर्म और शुष्क, रेगिस्तानों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर बनते हैं।
  3. समुद्री ध्रुवीय (mP): ठंडा और आर्द्र, ध्रुवीय क्षेत्रों के ठंडे महासागरों पर बनते हैं।
  4. स्थलीय ध्रुवीय (cP): ठंडा और शुष्क, उच्च अक्षांशों के बर्फ़ीले क्षेत्रों पर बनते हैं।
  5. स्थलीय आर्कटिक (cA): अत्यंत ठंडा और शुष्क, आर्कटिक क्षेत्रों के बर्फ़ीले क्षेत्रों पर बनते हैं।

Air Mass | वायु राशि: वायु राशि का संचलन और परिवर्तन

Air Mass | वायु राशि: वायु राशि स्थिर नहीं रहते; वे वायुमंडलीय परिसंचरण के कारण चलते हैं, और जिन क्षेत्रों से गुजरते हैं, उनके मौसम को प्रभावित करते हैं। चलते समय, वे निम्नलिखित परिवर्तनों से गुजरते हैं:

  • तापमान परिवर्तन: जब एक वायु राशि किसी अन्य तापमान वाले क्षेत्र में चलता है, तो यह धीरे-धीरे उस नए क्षेत्र के तापमान को ग्रहण कर लेता है।
  • आर्द्रता परिवर्तन: इसी प्रकार, वायु द्रव्यमान की आर्द्रता भी उस सतह के आधार पर बदलती है जिससे यह गुजरता है। उदाहरण के लिए, एक शुष्क स्थलीय वायु राशि जब महासागर के ऊपर से गुजरता है, तो यह आर्द्रता ग्रहण कर लेता है।

Air Mass | वायु राशि: मौसम और जलवायु पर प्रभाव

Air Mass | वायु राशि: विभिन्न वायु द्रव्यमानों के बीच की बातचीत अक्सर महत्वपूर्ण मौसम घटनाओं को जन्म देती है। जब दो विपरीत वायु द्रव्यमान मिलते हैं, तो वे मोर्चे बनाते हैं, जिससे वर्षा, तूफान और तापमान में परिवर्तन होता है। उदाहरण के लिए:

  • शीतल वाताग्र: जब एक ठंडा वायु द्रव्यमान एक गर्म वायु द्रव्यमान की ओर बढ़ता है, तो यह तूफान और अचानक तापमान गिरावट का कारण बनता है।
  • गर्म वाताग्र: जब एक गर्म वायु द्रव्यमान एक ठंडे वायु द्रव्यमान के ऊपर बढ़ता है, तो यह धीरे-धीरे गर्मी और निरंतर, स्थिर वर्षा का कारण बनता है।

Air Mass | वायु राशि: वायु राशि और जलवायु पैटर्न

वायु राशि की लंबी अवधि की गतियों से क्षेत्रीय जलवायु पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, समुद्री उष्णकटिबंधीय वायु राशि की नियमित गति दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य में आर्द्र परिस्थितियाँ लाती है, जबकि स्थलीय ध्रुवीय वायु द्रव्यमानों की दक्षिण की ओर गति सर्दियों में ठंड की लहरें लाती है।

Air Mass | वायु राशि: निष्कर्ष

Air Mass | वायु राशि: वायु राशि मौसम के पैटर्न और जलवायु को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उनके विशेषताओं, निर्माण, संचलन और बातचीत का अध्ययन करके, जलवायु वैज्ञानिक मौसम परिवर्तन का पूर्वानुमान कर सकते हैं और विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु को समझ सकते हैं। यह ज्ञान कृषि, आपदा प्रबंधन और विभिन्न अन्य क्षेत्रों के लिए आवश्यक है जो सही मौसम पूर्वानुमान पर निर्भर करते हैं।

HeartLand Theory

HeartLand Theory: हार्टलैंड सिद्धांत(हृदय-स्थल सिद्धान्त)

Heartland Theory: हार्टलैंड सिद्धांत राजनीतिक भूगोल में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसे 20वीं सदी की शुरुआत में सर हैलफोर्ड जॉन मैकिंडर ने प्रस्तुत किया था। इस सिद्धांत ने भू-राजनीतिक रणनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर गहरा प्रभाव डाला है, जिससे राष्ट्रों के शक्ति गतिशीलता और क्षेत्रीय नियंत्रण को समझने का तरीका प्रभावित हुआ है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम हार्टलैंड सिद्धांत की उत्पत्ति, सिद्धांतों और प्रभावों के साथ-साथ समकालीन भू-राजनीति में इसकी प्रासंगिकता की जांच करेंगे।

Heartland Theory:हार्टलैंड सिद्धांत की उत्पत्ति

Heartland Theory: ब्रिटिश भूगोलवेत्ता और शिक्षाविद् सर हैलफोर्ड मैकिंडर ने 1904 में अपने पेपर “द जियोग्राफिकल पिवट ऑफ हिस्ट्री”(The Geographical Pivot of History) में हार्टलैंड सिद्धांत प्रस्तुत किया। मैकिंडर का कार्य गहन साम्राज्यवादी प्रतिद्वंद्विता और वैश्विक अन्वेषण के दौर के दौरान सामने आया। उन्होंने यह समझाने का प्रयास किया कि भूगोलिक कारक राजनीतिक शक्ति और नियंत्रण को कैसे प्रभावित करते हैं।

Heartland Theory: हार्टलैंड सिद्धांत के मुख्य सिद्धांत

Heartland Theory: मैकिंडर का हार्टलैंड सिद्धांत “हार्टलैंड” की अवधारणा के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जो यूरेशिया के एक केंद्रीय क्षेत्र को दर्शाता है जिसे उन्होंने वैश्विक प्रभुत्व की कुंजी माना। सिद्धांत को निम्नलिखित मुख्य सिद्धांतों के माध्यम से संक्षेपित किया जा सकता है:

  1. भूगोलिक धुरी:
    • मैकिंडर ने यूरेशिया के एक विशाल क्षेत्र को, जो पूर्वी यूरोप से साइबेरिया तक फैला हुआ है, “भूगोलिक धुरी” या हार्टलैंड के रूप में पहचाना।
    • उन्होंने तर्क दिया कि यह क्षेत्र अपने आकार, संसाधनों और रणनीतिक स्थान के कारण विश्व को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
  2. हार्टलैंड का नियंत्रण:
    • मैकिंडर के अनुसार, जो भी हार्टलैंड को नियंत्रित करता है, वह संसाधनों और रणनीतिक लाभ को कमांड करता है ताकि वह “वर्ल्ड-आइलैंड” (यूरेशिया और अफ्रीका) पर प्रभुत्व स्थापित कर सके।
    • यह केंद्रीय क्षेत्र समुद्री मार्ग से कम सुलभ है, जिससे यह नौसैनिक शक्तियों के लिए घुसपैठ करना कठिन और एक प्रमुख भूमि शक्ति के लिए इसके संसाधनों को सुरक्षित और उपयोग करना आसान हो जाता है।
  3. विश्व का प्रभुत्व:
    • मैकिंडर ने प्रसिद्ध रूप से कहा, “जो पूर्वी यूरोप पर शासन करता है वह हार्टलैंड को कमांड करता है; जो हार्टलैंड पर शासन करता है वह वर्ल्ड-आइलैंड को कमांड करता है; जो वर्ल्ड-आइलैंड पर शासन करता है वह विश्व को कमांड करता है।”
    • उनका मानना था कि हार्टलैंड पर नियंत्रण एक शक्ति को वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव प्रकट करने में सक्षम बनाएगा।

Heartland Theory: हार्टलैंड सिद्धांत के प्रभाव

Heartland Theory: हार्टलैंड सिद्धांत के 20वीं सदी के दौरान भू-राजनीतिक रणनीति पर गहरे प्रभाव पड़े:

  1. भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताएँ:
    • सिद्धांत ने प्रमुख शक्तियों की रणनीतिक सोच को प्रभावित किया, जिसमें नाजी जर्मनी और सोवियत संघ शामिल थे, दोनों ने हार्टलैंड पर नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश की।
    • शीत युद्ध के दौरान, हार्टलैंड सोवियत संघ और पश्चिमी शक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, के बीच प्रतिद्वंद्विता का केंद्र था।
  2. नीति निर्माण:
    • पश्चिमी नीति निर्माताओं ने सोवियत प्रभाव को सीमित करने के लिए निवारक रणनीतियों और गठबंधनों को सही ठहराने के लिए हार्टलैंड सिद्धांत का उपयोग किया।
    • नाटो की स्थापना और मार्शल योजना आंशिक रूप से पूर्वी यूरोप और हार्टलैंड में सोवियत विस्तार को रोकने की इच्छा से प्रेरित थीं।
  3. भू-राजनीतिक सिद्धांत:
    • मैकिंडर का कार्य बाद के भू-राजनीतिक सिद्धांतों और विश्लेषणों की नींव बन गया, जिसमें स्पाईकमैन का रिमलैंड सिद्धांत भी शामिल है, जिसने हार्टलैंड के चारों ओर तटीय क्षेत्रों के महत्व पर जोर दिया।

Heartland Theory:समकालीन प्रासंगिकता

Heartland Theory:यद्यपि मैकिंडर के समय से भू-राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है, हार्टलैंड सिद्धांत समकालीन भू-राजनीति में प्रासंगिक बना हुआ है:

  1. ऊर्जा संसाधन:
    • हार्टलैंड क्षेत्र ऊर्जा संसाधनों, जैसे तेल, प्राकृतिक गैस, और खनिजों से समृद्ध है। इन संसाधनों पर नियंत्रण आज भी वैश्विक शक्तियों के लिए एक रणनीतिक प्राथमिकता है।
    • मध्य एशिया में रूस का प्रभाव और यूक्रेन में उसके कार्यों को हार्टलैंड के हिस्सों पर नियंत्रण बनाए रखने के नजरिए से देखा जा सकता है।
  2. भू-राजनीतिक बदलाव:
    • चीन का वैश्विक शक्ति के रूप में उदय यूरेशिया पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित कर रहा है। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) हार्टलैंड के पार कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण को बढ़ाने का लक्ष्य रखती है, जिससे उसका प्रभाव बढ़ता है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी रूस और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए आर्थिक, सैन्य और राजनयिक साधनों के माध्यम से इस क्षेत्र में लगे हुए हैं।
  3. रणनीतिक गठबंधन:
    • हार्टलैंड सिद्धांत रणनीतिक गठबंधनों और साझेदारियों के महत्व को रेखांकित करता है। आधुनिक भू-राजनीतिक रणनीतियों में अक्सर महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रभाव को सुरक्षित करने के लिए गठबंधनों का निर्माण और रखरखाव शामिल होता है।
    • हाल के दिनों में नाटो का सुदृढ़ीकरण, साथ ही क्वाड (संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, भारत, और ऑस्ट्रेलिया) जैसे साझेदारी, हार्टलैंड गतिशीलता के प्रबंधन में रणनीतिक सहयोग के निरंतर महत्व को दर्शाते हैं।

Heartland Theory: निष्कर्ष

Heartland Theory: सर हैलफोर्ड मैकिंडर द्वारा प्रस्तावित हार्टलैंड सिद्धांत राजनीतिक भूगोल और भू-राजनीति में एक मौलिक अवधारणा बनी हुई है। यूरेशिया के केंद्रीय क्षेत्र के रणनीतिक महत्व पर इसका जोर ऐतिहासिक और समकालीन भू-राजनीतिक रणनीतियों को आकार दिया है। जबकि वैश्विक परिदृश्य निरंतर विकसित हो रहा है, हार्टलैंड सिद्धांत के सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भूगोल के स्थायी महत्व की मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। इस सिद्धांत को समझना हमें वैश्विक शक्तियों के उद्देश्यों और कार्यों को समझने में मदद करता है क्योंकि वे 21वीं सदी की जटिल और आपस में जुड़ी दुनिया में नेविगेट करते हैं।

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत: पृथ्वी की संरचना और गति का रहस्य

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: पृथ्वी एक जीवंत ग्रह है, जो निरंतर परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट और पहाड़ों का निर्माण जैसी प्राकृतिक घटनाएं इसके गतिशील स्वरूप का प्रमाण हैं। इन सभी घटनाओं के पीछे एक वैज्ञानिक सिद्धांत काम करता है, जिसे प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत कहा जाता है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम इस सिद्धांत को विस्तार से समझेंगे, जिसमें प्लेट्स, प्लेट मार्जिन के प्रकार और पृथ्वी पर मौजूद प्रमुख व लघु प्लेट्स शामिल होंगे।

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025
Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत क्या है?

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी की सबसे बाहरी परत, जिसे भूपर्पटी (क्रस्ट) और इसके नीचे की ऊपरी मैंटल की परत कहते हैं, कई बड़े और छोटे टुकड़ों में विभाजित है। इन टुकड़ों को टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये प्लेट्स पृथ्वी की सतह पर तैरती हुई प्रतीत होती हैं, क्योंकि ये मैंटल की अर्ध-तरल परत (एस्थेनोस्फेयर) पर स्थित होती हैं। इन प्लेट्स की गति के कारण ही पृथ्वी पर भूगर्भीय घटनाएं घटित होती हैं।

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: टेक्टोनिक प्लेट्स क्या हैं?

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: टेक्टोनिक प्लेट्स पृथ्वी की भूपर्पटी और ऊपरी मैंटल से बनी कठोर संरचनाएं हैं। ये प्लेट्स अलग-अलग आकार और मोटाई की होती हैं। कुछ प्लेट्स महाद्वीपीय होती हैं, जो मुख्य रूप से ग्रेनाइट से बनी होती हैं, जबकि कुछ समुद्री प्लेट्स होती हैं, जो बेसाल्ट से बनी होती हैं। ये प्लेट्स हर साल कुछ सेंटीमीटर की गति से खिसकती हैं, जो भूकंप और ज्वालामुखी गतिविधियों का कारण बनती हैं।

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: प्लेट मार्जिन के प्रकार

प्लेट्स के किनारे, जिन्हें प्लेट मार्जिन कहा जाता है, वह स्थान होते हैं जहां दो प्लेट्स एक-दूसरे से मिलती हैं। इनके आधार पर तीन मुख्य प्रकार के मार्जिन होते हैं:

  1. अपसारी मार्जिन (Divergent Margins)
  • जब दो प्लेट्स एक-दूसरे से दूर खिसकती हैं, तो इसे अपसारी मार्जिन कहते हैं।
  • यह प्रक्रिया आमतौर पर समुद्र के नीचे होती है, जहां नई भूपर्पटी बनती है।
  • उदाहरण: मध्य-अटलांटिक रिज।
  1. अभिसारी मार्जिन (Convergent Margins)
  • जब दो प्लेट्स एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं और टकराती हैं, तो इसे अभिसारी मार्जिन कहते हैं।
  • इसमें एक प्लेट दूसरी के नीचे धंस जाती है, जिसे सबडक्शन कहते हैं।
  • इससे पहाड़ों का निर्माण और ज्वालामुखी गतिविधियां होती हैं।
  • उदाहरण: हिमालय पर्वत श्रृंखला।
  1. ट्रांसफॉर्म मार्जिन (Transform Margins)
  • जब दो प्लेट्स एक-दूसरे के बगल से क्षैतिज रूप से खिसकती हैं, तो इसे ट्रांसफॉर्म मार्जिन कहते हैं।
  • यहां नई भूपर्पटी नहीं बनती और न ही नष्ट होती है।
  • उदाहरण: सैन एंड्रियास फॉल्ट (कैलिफोर्निया)।

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: पृथ्वी की प्रमुख और लघु प्लेट्स

पृथ्वी पर कुल मिलाकर 15-20 टेक्टोनिक प्लेट्स मानी जाती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख और कुछ लघु हैं। इनका आकार और महत्व अलग-अलग होता है।

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: प्रमुख प्लेट्स (Major Plates)
  1. पैसिफिक प्लेट: यह सबसे बड़ी प्लेट है, जो प्रशांत महासागर के नीचे फैली है। यह ज्वालामुखी और भूकंप गतिविधियों के लिए जानी जाती है।
  2. उत्तरी अमेरिकी प्लेट: उत्तरी अमेरिका और अटलांटिक महासागर का हिस्सा इसके अंतर्गत आता है।
  3. यूरेशियन प्लेट: यूरोप और एशिया का बड़ा हिस्सा इस प्लेट पर स्थित है।
  4. अफ्रीकी प्लेट: अफ्रीका महाद्वीप इस प्लेट पर है।
  5. दक्षिण अमेरिकी प्लेट: दक्षिण अमेरिका इस प्लेट का हिस्सा है।
  6. इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट: भारत, ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर का हिस्सा इस प्लेट में शामिल है।
  7. अंटार्कटिक प्लेट: अंटार्कटिका महाद्वीप इस प्लेट पर स्थित है।
Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: लघु प्लेट्स (Minor Plates)

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: प्रमुख प्लेट्स के अलावा कई छोटी प्लेट्स भी हैं, जो भूगर्भीय गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कुछ उदाहरण हैं:

  1. नाज़का प्लेट: दक्षिण अमेरिका के पश्चिम में स्थित, यह सबडक्शन के लिए जानी जाती है।
  2. फिलीपीन प्लेट: फिलीपींस और पूर्वी एशिया के पास स्थित।
  3. कैरिबियाई प्लेट: कैरिबियन क्षेत्र में फैली हुई।
  4. कोकोस प्लेट: मध्य अमेरिका के पास प्रशांत महासागर में।

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: निष्कर्ष

Plate Tectonics Theory Notes hindi 2025: प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत ने पृथ्वी की संरचना और इसके परिवर्तनों को समझने में क्रांतिकारी बदलाव लाया है। यह हमें बताता है कि पृथ्वी की सतह स्थिर नहीं है, बल्कि यह प्लेट्स की गति के कारण लगातार बदल रही है। अपसारी, अभिसारी और ट्रांसफॉर्म मार्जिन के साथ-साथ प्रमुख और लघु प्लेट्स इस सिद्धांत के आधार हैं। यह ज्ञान न केवल वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि आम लोगों को भी प्रकृति की शक्तियों को समझने में मदद करता है।

आशा है कि इस ब्लॉग पोस्ट ने आपको प्लेट टेक्टोनिक्स के बारे में रोचक और उपयोगी जानकारी दी होगी। अपने विचार कमेंट में जरूर साझा करें!

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RSMSSB Pashu Parichar Result 2025

RSMSSB Pashu Parichar Result 2025: राजस्थान RSMSSB पशु परिचर परिणाम 2025 – यहाँ क्लिक करें और देखें अपना रिजल्ट

RSMSSB Pashu Parichar Result 2025: राजस्थान अधीनस्थ और मंत्रिस्तरीय सेवा चयन बोर्ड (RSMSSB) ने हाल ही में पशु परिचर (Animal Attendant) भर्ती परीक्षा 2025 के परिणामों की घोषणा की है। जिन उम्मीदवारों ने इस परीक्षा में भाग लिया था, वे अब अपने परिणाम की जाँच कर सकते हैं। यदि आप भी अपने परिणाम को देखने के लिए उत्सुक हैं, तो यह ब्लॉग पोस्ट आपके लिए है। यहाँ हम आपको बताएंगे कि आप अपना रिजल्ट कैसे देख सकते हैं और इसके लिए क्या-क्या करना होगा।

RSMSSB Pashu Parichar Result 2025: पशु परिचर परिणाम की जाँच कैसे करें?

RSMSSB ने परिणाम को ऑनलाइन उपलब्ध कराया है ताकि उम्मीदवार आसानी से इसे देख सकें। परिणाम देखने के लिए नीचे दिए गए चरणों का पालन करें:

  1. आधिकारिक वेबसाइट पर जाएँ: सबसे पहले RSMSSB की आधिकारिक वेबसाइट (www.rsmssb.rajasthan.gov.in) पर जाएँ।
  2. रिजल्ट सेक्शन में क्लिक करें: होमपेज पर आपको “Result” या “परिणाम” का विकल्प दिखाई देगा। उस पर क्लिक करें।
  3. पशु परिचर रिजल्ट लिंक खोजें: अब आपको “Animal Attendant Result 2025” से संबंधित लिंक ढूंढना होगा। यह लिंक आमतौर पर नवीनतम परिणामों की सूची में होता है।
  4. विवरण दर्ज करें: लिंक पर क्लिक करने के बाद, आपको अपना रोल नंबर, जन्म तिथि या अन्य आवश्यक जानकारी दर्ज करनी होगी।
  5. रिजल्ट देखें: सभी जानकारी सही-सही भरने के बाद “Submit” बटन पर क्लिक करें। आपका परिणाम स्क्रीन पर प्रदर्शित हो जाएगा।
  6. डाउनलोड और प्रिंट करें: भविष्य के लिए अपने रिजल्ट को डाउनलोड करें और उसका प्रिंटआउट निकाल लें।

यहाँ क्लिक करें और देखें अपना परिणाम

यदि आप सीधे अपने परिणाम तक पहुँचना चाहते हैं, तो यहाँ क्लिक करें और RSMSSB की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएँ। (नोट: यह एक डेमो लिंक है, कृपया वास्तविक परिणाम के लिए आधिकारिक वेबसाइट चेक करें।)

RSMSSB Pashu Parichar Result 2025: महत्वपूर्ण जानकारी

  • परिणाम की तारीख: परिणाम अप्रैल 2025 में घोषित किए गए हैं। सटीक तारीख के लिए वेबसाइट पर नवीनतम अपडेट देखें।
  • कट-ऑफ अंक: परिणाम के साथ-साथ कट-ऑफ अंक भी जारी किए जाएंगे। यह श्रेणी के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।
  • अगला चरण: परिणाम में सफल उम्मीदवारों को दस्तावेज़ सत्यापन और अन्य प्रक्रियाओं के लिए बुलाया जाएगा।

RSMSSB Pashu Parichar Result 2025: परिणाम से संबंधित समस्याएँ

RSMSSB Pashu Parichar Result 2025: यदि आपको अपना परिणाम देखने में कोई समस्या हो रही है, जैसे कि रोल नंबर भूल जाना या वेबसाइट पर तकनीकी दिक्कत, तो आप RSMSSB के हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा, आधिकारिक वेबसाइट पर “Forgot Roll Number” का विकल्प भी उपलब्ध हो सकता है।

RSMSSB Pashu Parichar Result 2025: निष्कर्ष

RSMSSB Pashu Parichar Result 2025: पशु परिचर भर्ती परीक्षा का परिणाम आपके कठिन परिश्रम का फल है। इसे देखने के लिए अभी देर न करें और ऊपर दिए गए लिंक या चरणों का उपयोग करके अपना रिजल्ट चेक करें। सभी सफल उम्मीदवारों को बधाई और अगले चरण के लिए शुभकामनाएँ!

क्या आपके पास इस प्रक्रिया से संबंधित कोई सवाल है? नीचे कमेंट करें, हम आपकी मदद करेंगे।
यहाँ क्लिक करें और अभी अपना परिणाम देखें!

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory)

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory): The theory of plate tectonics is the theory related to the movement of continents and oceans. In this the earth is considered to be divided into different plates. Terrestrial rigid land is called plate. The study related to the nature and flow of plates is called plate tectonics.
The theory of plate tectonics was propounded by Morgan and Isaac in 1965. McKenzie, Parker and Holmes are its main supporters.
In the theory of plate tectonics, the Earth's crust has been divided into several plates. These plates are made of lithosphere with a thickness of 100 km and float on the asthenosphere. So far 7 major and 20 minor plates have been detected.

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):PLATE TECTONICS THEORY | Major Plates

  • African plate
  • North American plate
  • South American plate
  • Antarctica plate
  • Indo Australian Plate
  • Eurasian plate
  • Pacific oceanic plate

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):PLATE TECTONICS THEORY | Minor Plates

  • Arabian Plate
  • Bismarck plate
  • Caribbean plate
  • Carolina plate
  • Cocos Plate
  • Juan de Fuca Plate
  • Nazca plate
  • Scottish plate
  • Indian plate
  • Persian plate
  • Anatolian Plate
  • China plate
  • Fuji plate
  • Somali Plate
  • Burmese Plate

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):PLATE TECTONICS THEORY | Types of Plate Margin

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):Plate Margins are most important from the geological point of view because earthquakes, volcanoes and other tectonic events take place with their help.

Generally plate Margins are divided into three classes –
1. Constructive Plate Margin – located above the upper facing pillars of two thermal convection waves. From here two plates move in the opposite direction from each other, due to which a rift is formed between the two and the magma of the asthenosphere comes up and a new crust is formed, hence it is called a constructive edge. The movement of plates along this edge is called divergent movement.
2. Destructive Plate Margin - located above the downward column of two thermal convection waves, due to which two plates move towards each other and the heavier plate is thrown below the lighter plate, due to which the crust is destroyed, hence it is called destructive plate edge. This area is called Benni off Zone.
3. Conservative Plate Margin - When two plates move parallel to each other, then such an edge is called a conservative margin. A transform fault is formed on their sides and earthquakes are experienced.

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory):Reason for Plate Movement

  • The density of the Earth’s crust is less than that of the asthenosphere.
  • Convection waves generated in the mantle act as a source of heat for the movement of the plates.
  • Gravitational Slippery |
  • Rotation of the Earth and tidal friction caused by the Sun and the Moon.
  • Plumes or rising cylindrical waves.

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Composition of Atmosphere | वायुमंडल का संघटन

Composition of Atmosphere: वायुमंडल पृथ्वी की सतह के उपर वायु का महासागर है जिसमें सभी जीवित प्राणी निवास करते हैं।

वायुमंडल गैसों, जलवाष्प एवं धूल कणों से बना है। वायुमंडल की ऊपरी परतों में गैसों का अनुपात इस प्रकार

बदलता है जैसे कि 120 कि॰मी॰ की ऊँचाई पर आक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है। इसी प्रकार, कार्बन

डाईआॅक्साइड एवम् जलवाष्प पृथ्वी की सतह से 90 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक ही पाये जाते हैं।

Composition of Atmosphere: गैस

कार्बन डाईआॅक्साइड मौसम विज्ञान की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण गैस है, क्योंकि यह सौर विकिरण के

लिए पारदर्शी है, लेकिन पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी है। यह सौर विकिरण के एक अंश को

सोख लेती है तथा इसके कुछ भाग को पृथ्वी की सतह की ओर प्रतिबिंबित कर देती है। यह ग्रीन

हाउस प्रभाव के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। दूसरी गैसों का आयतन स्थिर है, जबकि पिछले कुछ दशकों

में मुख्यतः जीवाश्म ईंधन को जलाये जाने के कारण कार्बन डाईआॅक्साइड के आयतन में लगातार वृद्धि हो

रही है। ओजेान वायुमंडल का दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक है जो कि पृथ्वी की सतह से 10 से 50 किलोमीटर की ऊँचाई के बीच पाया जाता है। यह एक फिल्टर की तरह कार्य करता है तथा सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर उनको पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से रोकता है।

जलवाष्प

जलवाष्प वायुमंडल में उपस्थित ऐसी परिवर्तनीय गैस है, जो ऊँचाई के साथ घटती जाती है। गर्म तथा आर्द्र उष्ण

कटिबंध में यह हवा के आयतन का 4 प्रतिशत होती है, जबकि धु्रवों जैसे ठंडे तथा रेगिस्तानों जैसे शुष्क प्रदेशों

में यह हवा के आयतन के 1 प्रतिशत भाग से भी कम होती है। विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की तरपफ जलवाष्प की

मात्रा कम होती जाती है। यह सूर्य से निकलने वाले ताप  के  भाग को अवशोषित करती है तथा पृथ्वी से

निकलने वाले ताप को संग्रहित करती है। इस प्रकार यह एक कंबल की तरह कार्य करती है तथा पृथ्वी को

न तो अधिक गर्म तथा न ही अधिक ठंडा होने देती है। जलवाष्प वायु को स्थिर और अस्थिर होने में भी

योगदान देती है।

धूलकण

वायुमंडल में छोटे-छोटे ठोस कणों को भी रखने की क्षमता होती है। ये छोटे कण विभिन्न स्रोतों जैसे-

समुद्री नमक, महीन मिट्टी, धुएँ की कालिमा, राख, पराग, धूल तथा उल्काओं के टूटे हुए कण से निकलते

हैं। धूलकण प्रायः वायुमंडल के निचले भाग में मौजूद होते हैं, पिफर भी संवहनीय वायु प्रवाह इन्हें काफी  ऊँचाई तक ले जा सकता है। धूलकणों का सबसे अधिक जमाव उपोष्ण और शीतोष्ण प्रदेशों में सूखी हवा के कारण होता है, जो विषुवत् और धु्रवीय प्रदेशों की तुलना में यहाँ अधिक मात्रा में होते है। धूल और नमक के कण आर्द्रताग्राही केद्र की तरह कार्य करते हैं जिस के चारों ओर जलवाष्प संघनित होकर मेघों का निर्माण करती हैं।

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UGC NET Exam Pattern

UGC NET JRF GEOGRAPHY PAPERS | Previous Year Question papers(2009-2014)

UGC NET JRF GEOGRAPHY PAPERS

UGC NET JRF GEOGRAPHY PAPERS. Check UGC NET Previous Year Question Papers PDF for UGC NET exam preparation. Now candidates can easily download UGC NET Previous Year Question Paper PDF from below article year wise.Previous Year Question papers are also available on website of UGC.

UGC NET JRF GEOGRAPHY PAPERS | Previous Year Question papers

UGC NET JRF GEOGRAPHY PAPERS. Previous year question papers helps a lot while preparing for UGC Net Exam. Specially in Geography often questions are repeated from previous year papers hence going through old papers helps a lot for new candidates. It also helps in having deep understanding about exam pattern, pattern of questions and how deep a candidate should read the subject. Hence here are links for previous year question papers of geography

YearPaper IIPaper III
Question Papers of NET June 2014  NewDownloadDownload
Question Papers of NET Dec. 2013DownloadDownload
Question Papers of NET June 2013 (UGC NET re-conducted on 08th Sept., 2013)DownloadDownload
Question Papers of NET June 2013 (UGC NET on 30th June, 2013)DownloadDownload
Question Papers of NET Dec. 2012DownloadDownload
Question Papers of NET June 2012DownloadDownload
Question Papers of NET Dec. 2011DownloadDownload
Question Papers of NET June 2011DownloadDownload
Question Papers of NET Dec. 2010DownloadDownload
Question Papers of NET June 2010DownloadDownload
Question Papers of NET Dec. 2009DownloadDownload
Question Papers of NET June 2009DownloadDownload

UGC NET JRF GEOGRAPHY PAPERS | Old Question papers Benefits

Studying previous year question papers can offer several benefits, including:

  1. Familiarity with Exam Pattern: Previous year question papers give you insight into the exam pattern, types of questions asked, and the overall structure of the exam. This helps you understand the format and distribution of marks, enabling you to plan your preparation accordingly.
  2. Identify Important Topics: Analyzing previous year question papers allows you to identify recurring topics and understand their importance in the exam. This helps you prioritize your study efforts and focus on areas that are frequently tested.
  3. Practice Time Management: Solving previous year question papers under timed conditions helps you develop effective time management skills. It enables you to get accustomed to the exam’s time constraints and learn how to allocate your time wisely among different sections or questions.
  4. Gauge Your Preparation Level: Attempting previous year question papers helps you assess your level of preparation. It provides a realistic simulation of the actual exam and helps you identify your strengths and weaknesses. You can then work on improving areas where you face difficulties.
  5. Understand Question Trends: Studying previous year papers helps you understand the question trends and the nature of questions asked. You can identify the style of questions, the level of difficulty, and the areas from which questions are frequently asked. This insight allows you to align your preparation accordingly.
  6. Boost Confidence: Regularly practicing previous year question papers instills confidence in you as you become familiar with the exam format and gain exposure to a variety of questions. This confidence can help reduce exam anxiety and improve your overall performance.

Remember, while studying previous year question papers is beneficial, it should be complemented with a comprehensive understanding of the subject matter and regular revision to achieve better results in the actual exam.

UGC NET new exam pattern

National Eligibility Test (UGC NET) had the following exam pattern:

  1. The UGC NET exam consisted of two papers: Paper 1 and Paper 2.
  2. Paper 1 is a general paper that tested teaching and research aptitude, reasoning ability, comprehension, and general awareness of the candidate.
  3. Paper 2 is subject-specific and aimed to assess the candidate’s knowledge in the chosen subject.
  4. Both papers are multiple-choice questions (MCQs) with four options, and candidates were required to select the correct answer.
  5. Paper 1 consists of 50 questions, and Paper 2 has 100 questions.
  6. The total duration of the exam is 3 hours (180 minutes).
  7. There is no negative marking for incorrect answers.

However, please note that exam patterns may change over time. To get the most accurate and up-to-date information, I recommend visiting the official website of UGC NET or contacting the concerned authorities directly.


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Tropical Cyclones and Their Distribution

tropical cyclone

Tropical Cyclones and Their Distribution. Tropical Cyclones are Low Pressure system in which turbulent wind blows. tropical cyclones typhoons , hurricanes and tornadoes are different names of tropical cyclones according to different regions. Typhoons in China sea; Tropical Cyclones or super cyclones in Indian Ocean; Hurricanes in Caribbean sea; willy-willies in north western Australia.

What is type tropical cyclone?

Tropical cyclone are defined by their region of origin. As the name indicated they are formed in tropical region around the globe.There are two types of cylcones first one is tropical cyclone and later one is temperate cyclone. Unlike temperate cyclone tropical cyclone does not contain warm front and cold front nor it contains warm airmass or cold air mass. It is developed from warm sea water’s latent heat and coriolis force in tropical areas between 5N to 25 N and 5S to 25S in both hemisphere.

How a tropical cyclone is formed?

Initial Formation

The formation and initial development of a cyclonic storm depends upon the transfer of water vapour and latent heat from the warm ocean water to the air, by evaporation from the sea surface.

It encourages formation of vertical cumulus clouds due to convection with condensation of rising air above the ocean surface.

Mature Stage

When a tropical storm escalate, the air rises in vigorous thunderstorms and tends to spread out horizontally at the tropopause. Once air spreads out, a high pressure at high levels is produced, which stimulates the downward motion of air due to convection.

With the inducement of subsidence, air warms up by compression and a warm  Low pressure centre  is generated which is called Eye of Cyclone.

Decay

A tropical cyclone begins to weaken after its landfall or when it passes over cold waters.

Distribution

tropical cyclone

MAJOR PASSES OF INDIA | भारत के प्रमुख दर्रे

MAJOR PASSES OF INDIA | भारत के प्रमुख दर्रे: MAJOR PASSES OF INDIA. पर्वतीय क्षेत्रो में पाए जाने वाले आवागमन के प्राकृतिक मार्ग जो दो ऊँची पहाडियों के मध्य निम्न भूमि होते हैं दर्रे कहलाते हैं | पहाड़ी क्षेत्रो में परिवहन हेतु ये अत्यंत महत्वपूर्ण है | भारत के कुछ प्रमुख दर्रों का विवरण नीचे दिया गया है |MAJOR PASSES OF INDIA.

MAJOR PASSES OF INDIA

MAJOR PASSES OF INDIA | भारत के प्रमुख दर्रे: MAJOR PASSES OF INDIA | प्रमुख दर्रे

MAJOR PASSES OF INDIA | भारत के प्रमुख दर्रे: Important passes in jammu and kashmir.passes in himalayas upsc. passes of india upsc.mountain passes in india map.

  1. काराकोरम दर्रा — यह लद्दाख में काराकोरम श्रेणी में स्थित है | यह 5540 मी की ऊंचाई पर स्थित है | यहाँ से होकर यारकंद एवं तारिम बेसिन का मार्ग गुजरता है |
  2. जोजिला दर्रा – यह लद्दाख में समुद्र तल से लगभग 3528 मी की ऊंचाई पर स्थित है  जो श्रीनगर को कारगिल और लेह से जोड़ता है | यहाँ 14 किमी लम्बी जोजिला सुरंग है जो एशिया की सबसे लम्बी द्विदिशा वाली सुरंग है |
  3. बुर्जिल दर्रा – यह कश्मीर घाटी को लद्दाख के मैदान से जोड़ता है | बर्फ से ढक जाने के कारन यह शीतकाल में परिवहन एवं व्यापर के लिए बंद रहता है |
  4. पीर पंजाल दर्रा – यह जम्मू कश्मीर के दक्षिण पश्चिम में स्थित है यह जम्मू को श्रीनगर से जोड़ता है | उप प्रायद्वीप विभाजन के बाद से यह दर्रा बंद है |
  5. बनिहाल दर्रा – जम्मू कश्मीर के दक्षिण पश्चिम में स्थित यह दर्रा जम्मू को श्रीनगर से जोड़ता है | शीत ऋतु में यह बर्फ से ढका रहता है |
  6. शिपकी ला – समुद्र तल से 5669 मी से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा सतलज महाखड्ड से होकर हिमाचल प्रदेश को तिब्बत से जोड़ता है | सतलज नदी इसी दर्रे से होकर भारत में प्रवेश करती है |
  7. रोहतांग दर्रा – यह हिमाचल प्रदेश की पीरपंजाल श्रेणी में स्थित है इसकी औसत ऊंचाई 3979 मी है | यह मनाली को लेह सड़क मार्ग से जोड़ता है | इसे लाहुल स्पीती जिले का प्रवेश द्वार कहा जाता है |
  8. बड़ा लाचाला – 4890 मी की ऊंचाई पर स्थित हिमाचल प्रदेश में यह दर्रा मनाली को लेह से जोड़ने वाले राष्ट्रिय राजमार्ग पर स्थित है | शीत ऋतु में यह आवागमन के लिए बंद हो जाता  है |
  9. माना दर्रा – यह महान हिमालय की कुमायूं पहाड़ियों में समुद्र तल से लगभग 5611 मी की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है | शीतकाल में बर्फ से ढका रहता है |
  10. नीति दर्रा – 5068 मी की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा उत्तराखंड के कुमायु में स्थित है | यह उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है |
  11. नाथुला दर्रा – 1962 के भारत चीन युद्ध के कारन चर्चा में रहा यह दर्रा सिक्किम राज्य की डोगेक्या श्रेणी में स्थित है | यह प्राचीन रेशम मार्ग पर स्थित है |
  12. जेलेप्ला दर्रा – यह सिक्किम में स्थित है जो दार्जिलिंग व चुम्बी घाटी से होकर तिब्बत जाने का मार्ग है | यह सिक्किम को लहासा से जोड़ता है |
  13. बोम्दिला दर्रा – यह अरुणाचल प्रदेश में स्थित है | इससे तवांग घाटी से होकर तिब्बत जाने का मार्ग गुजरता है |
  14. यांग्याप दर्रा – यह अरुणाचल प्रदेश के उत्तर पूर्व में स्थित है | इसी दर्रे के पास से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है |
  15. दिफू दर्रा – यह अरुणाचल प्रदेश के पूर्व में म्यांमार सीमा पर स्थित है | भारत और म्यांमार के बीच व्यापर एवं परिवहन के लिए यह वर्ष भर खुला रहता है |
  16. तुजू दर्रा – मणिपुर राज्य के दक्षिण पूर्व में स्थित इस दर्रे से इम्फाल से लापू व म्यांमार जाने का मार्ग गुजरता है |
  17. पांग साड दर्रा – यह अरुणाचल प्रदेश को मांडले (म्यांमार ) से जोड़ता है |
  18. थाल घाट – 538 मी ऊँचा यह दर्रा महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट की श्रेणियों में स्थित है | यहाँ से दिल्ली मुंबई सड़क मार्ग एवं रेल मार्ग गुजरता है |
  19. भोर घाट – यह महाराष्ट्र राज्य की पश्चिमी घाट की श्रेणियों में स्थित है | पुणे – बेलगाँव सड़क एवं रेलमार्ग यहाँ से गुजरते हैं |
  20. पाल घाट – यह नीलगिरी एवं अन्नामलाई पहाड़ी के मध्य स्थित है इसकी ऊंचाई 305 मी है | कालीकट त्रिचुर से कोयम्बतूर इरोड रेल व सड़क मार्ग यहाँ से होकर गुजरते हैं |

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