Atmospheric Pressure NET UPSC

Atmospheric Pressure NET | वायुदाब Atmospheric Pressure NET UPSC

Atmospheric Pressure NET UPSC

Atmospheric Pressure NET UPSC | वायुदाब :Atmospheric Pressure. किसी स्थान  पर इकाई क्षेत्रफल पर वायुमंडल की समस्त परतों द्वारा पड़ने वाला भार वायुदाब कहलाता है | पृथ्वी कि सतह पर वायुमंडल गुरुत्वाकर्षण बल के कारण वायुदाब डालता है |

वायुदाब का मापन – वायुदाब को बैरोमीटर (फॉरट्रीन या अनेरोइड )द्वारा मापा जाता है | वायुदाब नापने की इकाई मिलिबार या हेक्टोपास्कल है | भारत में प्रचलित इकाई मिलिबार है | 1 मिलिबार 1 वर्ग सेमी पर एक ग्राम भार के बराबर होता है |

बैरोमीटर के पठन में तेजी से गिरावट तूफान आने का संकेत देती है | पठन का तेजी से लगातार बढ़ना साफ़ मौसम या प्रतिचक्र्वातीय दशा का संकेत है | वायुदाब के वितरण को समदाब रेखाओ के द्वारा दर्शाया जाता है |

समदाब रेखाएं समुद्र तल पर समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने से बनती है | इसमें वायुदाब पर ऊंचाई का प्रभाव हटा दिया जाता है |  दो सम वायुदाब रेखाओ के बीच की दूरी वायुदाब प्रवणता / बेरोमेट्रिक ढाल  कहलाती है |

Atmospheric Pressure NET UPSC | वायुदाब का वितरण

वायुदाब का वितरण दो प्रकार से होता है –

उर्ध्वाधर वितरण – सामान्यतया ऊंचाई बढ़ने पर वायुदाब कम होता जाता है | प्रत्येक 10 मीटर की ऊंचाई पर एक मिलिबार की कमी आती है | 6 किमी की ऊंचाई पर वायुदाब लगभग आधा रह जाता है | वायुमंडल की निचली परतो में भरी गैसे पाई जाती है तथा गुरुत्वाकर्षण बल अधिक लगता है |

क्षैतिज वितरण – पृथ्वी पर कुल 7 वायुदाब कटिबंध पाए जाते हैं | भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबंध एवं ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबंध तापजनित हैं जबकि दोनों गोलार्धो में 30-35 डिग्री कटिबंध उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंध एवं 60-65 डिग्री पर उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध गतिजन्य हैं |

30-35 अक्षांश को अश्व अक्षांश कहा जाता है क्योंकि प्राचीन कल में घोड़ो को ले जाने वाली नौकाओं के आसन नौवहन के लिए घोड़ो को कभी कभी समुद्र में फेंक दिया जाता था |


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Earthquake

Earthquake | भूकंप

Earthquake भूकंप का अर्थ भू पर्पटी में प्रघाती तरंगो द्वारा उत्पन्न होने वाले कम्पन्न से है | इसका कारण आकस्मिक रूप से स्ठेतिक ऊर्जा का गतिज उर्जा में परिवर्तन होना है | इस लेख में हम भूकंप के कारण , भूकंपीय तरंगो के प्रकार एवं भूकंप के विश्व वितरण पर चर्चा करेंगे |

Earthquake

Earthquake | भूकंप के कारण

Earthquake: ज्वालामुखी क्रिया – भूकंप के आने का एक प्रमुख कारण ज्वालामुखी उद्भेदन है | जिससे पृथ्वी के भीतर से गर्म लावा एवं गैसों के निकलने से भूपर्पटी पर दबाव पड़ता है और कम्पन्न उत्पन होता है |

भ्रंश एवं संपीडन की क्रिया – ये चट्टानों के विस्थापन के कारण होने वाली क्रियाएँ हैं | इसमें चट्टानों का विपरीत दिशा में विस्थापन होता है | विश्व के नविन पर्वत क्षेत्रों में इस प्रकार के भूकंप आते रहते हैं | उदाहरण सेन फ्रांसिस्को का भूकंप |

समस्थितिक समायोजन या भुसंतुलन – यह गुरुत्वाकर्षण एवं उत्प्लावन बल का प्रतिफल है जिसके कारण क्रस्ट में स्थैतिक संतुलन कायम रहता है |

प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धांत – अमेरिकी भूगोलवेत्ता प्रोफेसर एच एफ रीड के अनुसार आन्तरिक चट्टानें लचीली होती है तथा एक सीमा तक दबाव सहन करने के पश्चात टूट जाती हैं एवं पूर्व स्थिति को प्राप्त होती हैं जिसके कारण भूकंप आते हैं |

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत – रचनात्मक प्लेट किनारे आने वाले भूकंप कम गहरे के एवं विनाशात्मक प्लेट किनारे आने वाले भूकंप अधिक गहरे के एवं विनाशकारी होते हैं |

जिस स्थान से भूकंप तरंगे उत्पन्न होती हैं उसे भूकंप मूल कहा जाता है एवं सबसे पहले जहाँ भूकंप अनुभव किया जाता है उसे भूकंप केंद्र कहा जाता है

Earthquake: प्लेट विवर्तनिकी के अनुसार भूकंप के प्रकार

  • छिछले केंद्र वाले भूकंप – 0-35 किमी गहराई
  • मध्यम केंद्र वाले भूकंप – 35-100 किमी गहरे के भूकंप
  • गहन केंद्र वाले भूकंप – 100 से 350 किमी गहरे भूकंप
  • पतालीय केंद्र वाले भूकंप – 350 – 700 किमी गहरे भूकंप

Earthquake: भूकंपीय तरंगो के प्रकार

भूकंप के समय जो उर्जा भूकंप मूल से निकलती है उसे प्रत्यास्थ उर्जा कहते हैं | भूकंप के दौरान मुख्य रूप से तीन प्रकार की भूकंपीय तरंगें उत्पन्न होती हैं –

प्राथमिक अथवा लम्बवत तरंगे – इन्हें P तरंगे कहा जाता है | ये अनुदैर्ध्य तरंगे हैं एवं ध्वनि तरंगो की तरह गति करती हैं | ये ठोस एवं तरल दोनों माध्यम में चल सकती हैं | S तरंगो की तुलना में इनकी गति 66 प्रतिशत अधिक होती है |

द्वितीयक तरंगे – इन्हें S तरंगे कहा जाता हैं ये प्रकाश तरंगो की भांति व्यव्हार करती हैं | ये केवल ठोस माध्यम में ही गति करती हैं |ये पृथ्वी के कोर से गुजर नहीं पाती अतः इस से अंदाजा लगाया गया है की पृथ्वी का कोर तरल अवस्था में है | तृतीयक तरंगे – इन्हें धरातलीय तरंगे भी कहा जाता है | ये अत्यधिक प्रभावशाली तरंगे हैं तथा उपरी भाग को प्रभावित करती हैं | इनकी गति अत्यंत धीमी होती हैं तथा इनका प्रभाव सर्वाधिक विनाशकारी होता है |

Earthquake: भूकंप का भौगोलिक वितरण

विश्व में भूकंप का वितरण उन्हीं क्षेत्रो से सम्बंधित है जो भूगर्भिक रूप से कमजोर एवं अव्यवस्थित हैं | विश्व में भूकंप की प्रमुख तीन पेटियां निम्नलिखित हैं –

प्रशांत महासागरीय तटीय पेटी – इसे परिप्रशांत मेखला भी कहा जाता है | यह विश्व का सर्वाधिक विस्तृत भूकंप क्षेत्र है यहाँ विश्व के 63 प्रतिशत भूकंप आते हैं | चिली , केलिफोर्निया , अलास्का जापान , फिलिपिन्स न्यू जीलैंड के भूकंप |

मध्य महाद्वीपीय पेटी – इस पेटी में विश्व के 21 प्रतिशत भूकंप आते हैं | यह प्लेट अभिसरण का क्षेत्र है एवं यहाँ आने वाले अधिकांश भूकंप संतुलन मूलक  है | यह केप वर्ड से शुरू होकर अटलांटिक एवं भूमध्य सागर को पार करके आल्प्स , काकेशश , हिमालय से होते हुए दक्षिण की ओर मुड जाती है | भारत के भूकंप क्षेत्र इसी पेटी के अंतर्गत आते हैं | मध्य अटलांटिक पेटी – यह मध्य अटलांटिक कटक में आइस लैंड से लेकर दक्षिण में बोवेट द्वीप  तक विस्तृत है | यहाँ कम तीव्रता के भूकंप आते हैं ये संतुलनकारी एवं रूपांतर प्रकृति के होते हैं |


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Oceanic Salinity | महासागरीय जल की लवणता

Oceanic Salinity | महासागरीय जल की लवणता: महासागर की लवणता समुद्री जल में घुले हुए लवण की मात्रा को दर्शाती है। लवणता वह शब्द है जिसका उपयोग समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा को निर्धरित करने में किया जाता है। इसका परिकलन 1,000 ग्राम॰ या एक किलोग्राम समुद्री जल में घुले हुए नमक ग्राम में की मात्रा द्वारा किया जाता है। इसे प्रायः प्रति 1,000 भाग या पीपीटी के रूप में व्यक्त किया जाता है। लवणता समुद्री जल का महत्वपूर्ण गुण है। 24.7 प्रति हजार की लवणता को खारे जल को सीमांकित करने का उच्च सीमा माना गया है।

Oceanic Salinity: महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक

  1. महासागरों की सतह के जल की लवणता मुख्यतः वाष्पीकरण एवं वर्षण पर निर्भर करती है।
  2. तटीय क्षेत्रों में सतह के जल की लवणता नदियों के द्वारा लाए गए ताजे जल के द्वारा तथा धु्रवीय क्षेत्रों में बर्फ के जमने एवं पिघलने की क्रिया से सबसे अधिक प्रभावित होती है।
  3. पवन भी जल को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्रों में स्थानांतरित करके लवणता को प्रभावित करती है।
  4. महासागरीय धाराएँ भी लवणता में भिन्नता उत्पन्न करने में सहयोग करती हैं। जल की लवणता, तापमान एवं घनत्व परस्पर संबंधित होते हैं। इसलिए, तापमान अथवा घनत्व में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किसी क्षेत्रा की लवणता को प्रभावित करता है।

Oceanic Salinity: लवणता का क्षैतिज वितरण

Oceanic Salinity: सामान्य खुले महासागर की लवणता 33 से 37 प्रति हजार के बीच होती है। चारों तरफ स्थल से घिरे लाल सागर में यह 41 प्रति हजार तक होती हैंए जबकि आर्कटिक एवं ज्वार नद मुख में मौसम के अनुसार लवणता 0 से 35 प्रति हजार के बीच पाई जाती है। गर्म तथा शुष्क क्षेत्रों मेंए जहाँ वाष्पीकरण उच्च होता है कभी.कभी वहाँ की लवणता 70 प्रति हजार तक पहुँच जाती है। प्रशांत महासागर के लवणता में भिन्नता मुख्यतः इसके आकार एवं बहुत अधिक क्षेत्रीय विस्तार के कारण है। उत्तरी गोलाध्र्द्ध के पश्चिमी भागों में लवणता 35 में से कम होकर 31 प्रति हजार हो जाती हैए क्योंकि आर्कटिक क्षेत्रा का पिघला हुआ जल वहाँ पहुँचता है। इसी प्रकार 15 से 20 दक्षिण के बाद यह तक 33 प्रति हजार तक घट जाती है। अटलांटिक महासागर की औसत लवणता 36 प्रति हजार के लगभग है। उच्चतम लवणता 15 उत्तर° से 20 उत्तर ° अक्षांश के बीच दर्ज की गई है। अधिकतम लवणता 20 एवं 30 उत्तरी तथा 20 से 60 पष्चिम के बीच पाई जाती है। यह उत्तर की ओर क्रमिक रूप से घटती जाती है। उच्च अक्षांश में स्थित होने के बावजूद उत्तरी सागर में उत्तरी अटलांटिक प्रवाह के द्वारा लाए गए अधिक लवणीय जल केकारण अधिक लवणता पाई जाती है। बाल्टिक समुद्र की लवणता कम होती हैए क्योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में नदियों का पानी प्रवेश करता है। भूमध्यसागर की लवणता उच्च वाष्पीकरण के कारण अधिक होती है। काले सागर की लवणता नदियों के द्वारा अधिक मात्रा में लाए जाने वाले ताजे जल के कारण कम होती है। हिंद महासागर की औसत लवणता 35 प्रति हजार है। बंगाल की खाड़ी में गंगा नदी के जल के मिलने से लवणता की प्रवृत्ति कम पाई जाती है। इसके विपरीत अरब सागर की लवणता उच्च वाष्पीकरण एवं ताजे जल की कम प्राप्ति के कारण अधिक है।

Oceanic Salinity: लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरण

गहराई के साथ लवणता में परिवर्तन आता है, लेकिन इसमें परिवर्तन समुद्र की स्थिति पर निर्भर करता है। सतह की लवणता जल के बर्पफ या वाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाने के कारण बढ़ जाती है या ताजे जल के मिल जाने से घटती है, जैसा कि नदियों के द्वारा होता है। गहराई में लवणता लगभग नियत होती है, क्योंकि वहाँ किसी प्रकार से पानी की कमी या नमक की मात्रा में ‘वृद्धि’ नहीं होती। महासागरों के सतही क्षेत्रों एवं गहरे क्षेत्रों के बीच लवणता में अंतर स्पष्ट होता है। कम लवणता वाला जल उच्च लवणता व घनत्व वाले जल के उफपर स्थित होता है। लवणता साधारणतः गहराई के साथ बढ़ती है तथा एक स्पष्ट क्षेत्र, जिसे हैलोक्लाईन कहा जाता है, में यह तीव्रता से बढ़ती है। लवणता समुद्री जल के घनत्व को प्रभावित करती है तथा महासागरीय जल के स्तरीकरण को प्रभावित करता है। यदि अन्य कारक स्थिर रहें तो समुद्री जल की बढ़ती लवणता उसके घनत्व को बढ़ाती है। उच्च लवणता वाला समुद्री जल, प्रायः कम लवणता वाले जल के नीचे बैठ जाता है। इससे लवणता का स्तरीकरण हो जाता है।

State Nation and Nation-State

State Nation and Nation-State | राज्य , राष्ट्र एवं राष्ट्र राज्य

State Nation and Nation-State. सामान्य बोलचाल की भाषा में राज्य व राष्ट्र को समानार्थक माना जाता है जबकि राजनैतिक भूगोल में दोनों शब्दों का प्रयोग भिन्न भिन्न परिप्रेक्ष्य में किया जाता है।

State Nation and Nation-State | राज्य(State)

State Nation and Nation-State. राज्य शब्द लेटिन भाषा के स्टेट शब्द का अनुवाद है जिसका अर्थ है प्रास्थिति अथवा दशा। राज्य एक राजनैतिक ईकाई है जिसके प्रमुख घटक- क्षेत्र,जनसंख्या,सार्वभौमिकता, राजधानी , आर्थिक संरचना, संचरण तंत्र एवं भाषा , संस्क्ृति आदि हैं।

State Nation and Nation-State | राष्ट्र(Nation)

State Nation and Nation-State . राष्ट्र शब्द अंग्रेजी भाषा के नेशन शब्द को अनुवाद है जो मूल लेटिन शब्द नेशिया से बना है जिसका अर्थ जन्म अथवा जाति है। यह एक सामाजिक इकाई है जो दीर्घकालिक सांस्क्ृतिक ऐतिहासिक विकास प्रक्रिया का परिणाम है। इसका अपना क्षेत्र तो होता है किंतु राज्य की भांति सार्वभौमिक सत्ता नहीं होती। इसके निवासी परस्पर एकता ही भावना से बंधे होते हैं। एक राष्ट्र में कई राज्य हो सकते हैं जैसे फ्रांस, बेल्जियम एवं स्व्टिजरलैंड को एक फ्रेंच राष्ट्र माना जाता है। इसी प्रकार एक राज्य में कई राष्ट्र हो सकते हैं जैसे श्रीलंका में तमिल एवं सिंहली।

राष्ट्र राज्य(Nation-State)

राज्य जब राष्ट्र के अनुरूप होता है तो उसमें पर्याप्त दृढता एवं स्थायित्व आ जाता है । ऐसी स्थिति को राष्ट्र -राज्य कहा जाता है। विश्व में अनेक राष्ट्र-राज्य हैं यथा- संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, न्यूजीलैंड, जापान आदि।


Monsoon Retreating | मानसून निवर्तन | मानसून की वापसी

Monsoon Retreating: मानसून का पीछे हटना या वापस लौटना मानसून निवर्तन कहलाता है | सितम्बर प्रारंभ से उत्तरी भारत से मानसून पीछे हटने लगता है | लौटती हुई मानसून पवने बंगाल की खाड़ी से नमी ग्रहण करके तमिलनाडु के उत्तरी पूर्वी तट पर वर्षा करती हैं |

Monsoon Retreating

Monsoon Retreating: मानसून के निवर्तन की ऋतु

Monsoon Retreating: अक्टूबर एवं नवम्बर का महिना वर्षा ऋतु से शीत ऋतु में परिवर्तन का काल होता है इसे मानसून निवर्तन की ऋतु या मानसून की वापसी भी कहा जाता है | सितम्बर के अंत में सूर्य के दक्षिणायन होने की स्थिति में गंगा के मैदान पर स्थित निम्न दाब की द्रोणी भी दक्षिण की और खिसकना शुरू कर देती है इससे दक्षिणी पश्चिमी मानसून कमजोर पड़ने लगता है |

सूर्य की दक्षिणायन गति के फलस्वरूप मानसून पीछे हटने लगता है एवं दक्षिणी पूर्वी मानसून का स्थान उत्तरी पूर्वी मानसून ले लेता है |

Monsoon Retreating: मानसून वापसी एक क्रमिक प्रक्रिया

Monsoon Retreating: मानसून की वापसी एक क्रमिक प्रक्रिया है जो सितम्बर के पहले सप्ताह से पश्चिमी राजस्थान से मानसून के लौटने के साथ प्रारंभ होती है | इस महीने के अंत तक राजस्थान, गुजरात , पश्चिमी गंगा मैदान से लौट चूका होता है | अक्टूबर के आरंभ में बंगाल की खाड़ी के उत्तरी भागों में स्थित हो जाता है | नवम्बर के प्रारंभ में यह कर्णाटक तमिलनाडु की और बढ़ जाता है | दिसम्बर के मध्य तक निम्न वायुदाब का केंद्र प्रायद्वीप से पूरी तरह हट चुका होता है |

उच्च तापमान एवं आर्द्रता वाली अवस्था के कारन दिन का मौसम असहनीय हो जाता है इसे क्वार की उमस या कार्तिक मास की ऊष्मा कहा जाता है |

लौटती हुई मानसून पवने बंगाल की खाड़ी से ऊष्मा ग्रहण करके उत्तर पूर्वी मानसून के रूप में तमिलनाडु के रूप में वर्षा करती हैं | यहाँ अक्टूबर और नवम्बर के महोने सबसे अधिक वर्षा वाले होते हैं |


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Certificate Physical and Human Geography written by Goh Cheng Leon. जी सी लियोंग भूगोल की एक लोकप्रिय पुस्तक है। इसका प्रकाशन आॅक्सफोर्ड प्रकाशन द्वारा किया जा रहा है। यह सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थियों हेतु सामान्य ज्ञान के पेपर एवं आप्शनल पेपर दोनों की तैयारी हेतु समान रूप से उपयोगी है।भूगोल विषय से नेट एवं जेआरएफ की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों हेतु भी यह समान रूप से उपयोगी है।इस पुस्तक का प्रकाशन Certificate Physical and Human Geography written by Goh Cheng Leong के नाम से किया जा रहा है।

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G C LEONG GEOGRAPHY

G C LEONG GEOGRAPHY. Certificate Physical and Human Geography written by Goh Cheng Leon | विषय सूची

G C LEONG GEOGRAPHY पुस्तक की विषय सूची को दो मुख्य भागों में बांटा गया है।

  1. भौतिक भूगोल(PHYSICAL GEOGRAPHY)
  2. मौसम, जलवायु और वनस्पति(WEATHER, CLIMATE AND VEGETATION)

G C LEONG GEOGRAPHY भौतिक भूगोल(PHYSICAL GEOGRAPHY)

G C LEONG GEOGRAPHY इस भाग में कुल 12 यूनिट हैं। जिनमें पृथ्वी एवं ब्रह्मांड , पृथ्वी की क्रस्ट, भूकंप एवं ज्वालामुखी , अपक्षय वृहद संचलन एवं भूमिगत जल, नदीय ,हिमानी, शुष्क , चूना पत्थर एवं तटीय स्थलाकृतियां, झीलें, कोरल रीफ एवं महासागरों का सारगर्भित वर्णन दिया गया है।

G C LEONG GEOGRAPHY मौसम, जलवायु और वनस्पति(WEATHER, CLIMATE AND VEGETATION)

G C LEONG GEOGRAPHY इस भाग में 13 से 25 तक कुल 13 यूनिट हैं। जिनमें मौसम, जलवायु, उष्ण आर्द्र भूमध्यरेखीय जलवायु, सवाना/सूडान जलवायु, उष्ण एवं मध्य आक्षांश मरूस्थलीय जलवायु, भूमध्यसागरीय जलवायु , स्टेपी जलवायु, चीन तुल्य जलवायु , ब्रिटिश तुल्य जलवायु , साईबेरियन जलवायु, लारेंशियन जलवायु एवं ध्रुवीय जलवायु का सारगर्भित वर्णन दिया गया है।

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प्रश्न पत्र- 1

भूगोल के सिद्धांत 

प्राकृतिक भूगोल 

  1. भू -आकृति विज्ञान : भू -आकृति विकास के नियंत्रक कारण; अंतर्जात एवं बहिर्जात बल: भू -पर्पटी का उद्गम एवं विकास: भू-चुंबकत्व के मूल सिद्धांत: पृथ्वी के अंतरंग की प्राकृतिक दशाएं।भू-अभिनतिः महाद्वीपीय विस्थापनः समस्थितिः प्लेट विवर्तनिकीः पर्वतोत्पति अभिनव विचार: ज्वालामुखी: भूकम्प एवं सुनामी: भू- आकृतिक चक्र एवं दृश्यभूमि विकास की संकल्पनाएं, अनाच्छादन कालानुक्रमः जलमार्ग आकृतिक विज्ञान: अपरदन पृष्ठः प्रवणता विकास: अनुप्रयुक्त भू- आकृति विज्ञान: भू- जल विज्ञान, आर्थिक भू- विज्ञान एवं पर्यावरण।
  2. जलवायु विज्ञान: विश्व के ताप एवं दाब कटिबंध, पृथ्वी का तापीय बजट: वायुमंडल परिसंचरण, वायु मंडल स्थिरता एवं अनस्थिरता, भू- मंडलीय एवं स्थानीय पवन: मानसून एवं जेट प्रवाहः वायु राशि एवं वाताग्रजननः शीतोष्ण एवं उष्णकटिबंधीय चक्रवात : वर्षण के प्रकार एवं वितरण : मौसम एवं जलवायु : कोपेन, थॉर्नवेट एवं त्रैवार्धा का विश्व जलवायु परिवर्तन में मानव की भूमिका एवं अनुक्रिया, अनुप्रयुक्त जलवायु विज्ञान एवं नगरी जलवायु ।
  3. समुद्र विज्ञान: अटलांटिक, हिंद एवं प्रशांत महासागरों की तलीय स्थलाकृति : महासागरों का ताप एवं लवणता : उष्मा एवं लवण बजट, महासागरी निक्षेप : तरंग धाराएं एवं ज्वार भाटा : समुद्रीय संसाधन जीवीय, खनिज एवं ऊर्जा संसाधन, प्रवाल भित्तियां : प्रवाल विरंजन : समुद्र परिवर्तन : समुद्र नियम एवं समुद्री प्रदूषण ।
  4. जीव भूगोल : मृदाओं की उत्पति, मृदाओं का वर्गीकरण एवं वितरण : मृदा परिच्छेदिका : मृदा अपरदन : न्यूनीकरण एवं संरक्षण :  पादप एवं जन्तुओं के वैश्यिक वितरण को प्रभावित करने वाले कारक : वन अपरोपण की समस्याएं एवं संरक्षण के उपाय : सामाजिक वानिकी :  कृषि वानिकी :  वन्य जीवन: प्रमुख जीन पूल केंद्र।
  5. पर्यावरणीय भूगोल : पारिस्थितिकी के सिद्धांत : मानव पारिस्थितिक अनुकूलन : परिस्थितिकी एवं पर्यावरण पर मानव का प्रभाव: वैश्विक एव क्षेत्रीय पारिस्थितिक परिवर्तन एवं असंतुलन: पारितंत्र उनका प्रबंधन एवं संरक्षण: पर्यावरणीय निम्नीकरण, प्रबंध एवं संरक्षण: जैव विविधता एवं संपोषण विकास: पर्यावरणीय शिक्षा एवं विधान |

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  3. कृषि : अवसंरचनाः सिंचाई, बीज, उर्वरक, विद्युत; संस्थागत कारक: जोत भू-धारण एवं भूमि सुधारः शस्यन प्रतिरूप, कृषि उत्पादकता, कृषि प्रकर्ष, फसल संयोजन, भूमि क्षमता, कृषि एवं सामाजिक वानिकी; हरित क्रांति एवं इसकी सामाजिक आर्थिक एवं पारिस्थितिक विवक्षा, वर्षाधीन खेती का महत्व; पशुधन संसाधन एवं श्वेत क्रांति: जल कृषि; रेशम कीटपालन, मधुमक्खी पालन एवं कुक्कुट पालन, कृषि प्रादेशीकरण, कृषि जलवायवी क्षेत्र; कृषि पारिस्थितिक प्रदेश |
  4. उद्योग : उद्योगों का विकास कपास, जूट, वस्त्रोद्योग, लोह एवं इस्पात, अलुमिनियम, उर्वरक, कागज, रसायन एवं फार्मास्युटिकल्स, आटोमोबाइल, कुटीर एवं कृषि आधारित उद्योगों के अवस्थिति कारक, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित औद्योगिक घराने एवं संकुल; औ‌द्योगिक प्रादेशीकरण, नई औद्योगिक नीतियां; बहुराष्ट्रीय कंपनियां एवं उदारीकरण, विशेष आर्थिक क्षेत्र; पारिस्थितिकी पर्यटन समेत पर्यटन ।
  5. परिवहन, संचार एवं व्यापार : सड़क, रेलमार्ग, जलमार्ग, हवाई मार्ग एवं पाइपलाइन, नेटवर्क एवं प्रादेशिक विकास में उनकी पूरक भूमिका, राष्ट्रीय एवं विदेशी व्यापार वाले पतनों का बढ़ता महत्व, व्यापार संतुलन, व्यापार नीति, निर्यात प्रकमण क्षेत्र; संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी में आया विकास और अर्थव्यवस्था तथा समाज पर उनका प्रभाव; भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम |
  6. सांस्कृतिक विन्यास : भारतीय समाज का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य ; प्रजातीय, भाषिक एवं नृजातीय विविधताएं; धार्मिक अल्पसंख्यक, प्रमुख जनजातियां, जनजातियां क्षेत्र तथा उनकी समस्याएं, सांस्कृतिक प्रदेश: जनसंख्या की संवृद्धि, वितरण एवं घनत्व: जनसांख्यिकीय गुणः लिंग अनुपात, आयु संरचना, साक्षरता दर, कार्यबल, निर्भरता अनुपात, आयुकाल: प्रवासन (अंतः प्रादेशिक, प्रदेशांतर तथा अंतर्राष्ट्रीय) एवं इससे जुड़ी समस्याएं, जनसंख्या समस्याएं एवं नीतियां, स्वास्थ्य सूचक |
  7. बस्ती : ग्रामीण बस्ती के प्रकार, प्रतिरूप तथा आकारिकी; नगरीय विकास; भारतीय शहरों की आकारिकी; भारतीय शहरों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण; सत्रनगर एवं महानगरीय प्रदेश ; नगर स्वप्रसार गंदी बस्ती एवं उससे जुड़ी समस्याएं; नगर आयोजना; नगरीकरण की समस्या एवं उपचार ।
  8. प्रादेशिक विकास एवं आयोजना : भारत में प्रादेशिक आयोजना का अनुभव; पंचवर्षीय योजनाएं; समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रमः पंचायती राज एवं विकेंद्रीकृत आयोजना; कमान क्षेत्र विकास, जल विभाजन प्रबंध; पिछड़ा क्षेत्र, मरुस्थल, अनावृष्टि प्रबण, पहाड़ी,  जनजातीय क्षेत्र विकास के लिए आयोजना;  बहुस्तरीय योजना ; प्रादेशिक योजना एवं द्वीप क्षेत्रों का विकास।
  9. राजनैतिक परिप्रेक्ष्य : भारतीय संघवाद का भौगोलिक आधार; राज्य पुनर्गठन, नए राज्यों का आविर्भाव;  प्रादेशिक चेतना एवं अंतर्राज्य मुद्दे; भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा और संबंधित मुद्दे: सीमापार आतंकवाद, वैश्विक मामलों में भारत की भूमिका, दक्षिण एशिया एवं हिंद महासागर परिमंडल की भू-राजनीति |

Geography Optional Syllabus UPSC: समकालीन मुद्दे :  पारिस्थितिक मुद्दे पर्यावरणीय संकट: भू-स्खलन, भूकंप, सुनामी, बाढ़  एवं अनावृष्टि, महामारी, पर्यावरणीय प्रदूषण से संबंधित मुद्दे, भूमि उपयोग के प्रतिरुप में बदलाव, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन एवं पर्यावरण प्रबंधन के सिद्धांत; जनसंख्या विस्फोट एवं खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय निम्नीकरण, वनोन्मूलन, मरुस्थलीकरण एवं मृदा अपरदन, कृषि एवं औद्योगिक अशांति की समस्याएं ,आर्थिक विकास में प्रादेशिक असमानताएं; संपोषणीय वृद्धि एवं विकास की संकल्पना, पर्यावरणीय संचेतना; नदियों का सहवर्धन भूमंडलीकरण एवं भारतीय अर्थव्यवस्था ।

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1 भूआकृति विज्ञान
2 जलवायु विज्ञान
3 समुद्र विज्ञान
4 पर्यावरण भूगोल
5 जनसंख्या एवं अधिवास भूगोल
6 आर्थिक गतिविधि और क्षेत्रीव विकास का भूगोल
7 सांस्कृतिक , सामाजिक एवं राजनैतिक भूगोल
8 भौगोलिक चिंतन
9 भौगोलिक तकनीकियां
10 भारत का भूगोल

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भूगोल विषय का विस्तृत सिलेबस नीचे दिया गया है।

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उक्त सिलेबस यूजीसी की आधिकारिक वेबसाईट से लिया गया है फिर भी अभ्यर्थी एक बार आधिकारिक वेबसाईट पर जाकर सभी बिन्दुओं को सुनिश्चित कर लेवें किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर युजीसी द्वारा जारी आधिकारिक सिलेबस ही मान्य होगा

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Composition of Atmosphere | वायुमंडल का संघटन

वायुमंडल पृथ्वी की सतह के उपर वायु का महासागर है जिसमें सभी जीवित प्राणी निवास करते हैं।

वायुमंडल गैसों, जलवाष्प एवं धूल कणों से बना है। वायुमंडल की ऊपरी परतों में गैसों का अनुपात इस प्रकार

बदलता है जैसे कि 120 कि॰मी॰ की ऊँचाई पर आक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है। इसी प्रकार, कार्बन

डाईआॅक्साइड एवम् जलवाष्प पृथ्वी की सतह से 90 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक ही पाये जाते हैं।

गैस

कार्बन डाईआॅक्साइड मौसम विज्ञान की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण गैस है, क्योंकि यह सौर विकिरण के

लिए पारदर्शी है, लेकिन पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी है। यह सौर विकिरण के एक अंश को

सोख लेती है तथा इसके कुछ भाग को पृथ्वी की सतह की ओर प्रतिबिंबित कर देती है। यह ग्रीन

हाउस प्रभाव के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। दूसरी गैसों का आयतन स्थिर है, जबकि पिछले कुछ दशकों

में मुख्यतः जीवाश्म ईंधन को जलाये जाने के कारण कार्बन डाईआॅक्साइड के आयतन में लगातार वृद्धि हो

रही है। ओजेान वायुमंडल का दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक है जो कि पृथ्वी की सतह से 10 से 50 किलोमीटर की ऊँचाई के बीच पाया जाता है। यह एक फिल्टर की तरह कार्य करता है तथा सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर उनको पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से रोकता है।

जलवाष्प

जलवाष्प वायुमंडल में उपस्थित ऐसी परिवर्तनीय गैस है, जो ऊँचाई के साथ घटती जाती है। गर्म तथा आर्द्र उष्ण

कटिबंध में यह हवा के आयतन का 4 प्रतिशत होती है, जबकि धु्रवों जैसे ठंडे तथा रेगिस्तानों जैसे शुष्क प्रदेशों

में यह हवा के आयतन के 1 प्रतिशत भाग से भी कम होती है। विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की तरपफ जलवाष्प की

मात्रा कम होती जाती है। यह सूर्य से निकलने वाले ताप  के  भाग को अवशोषित करती है तथा पृथ्वी से

निकलने वाले ताप को संग्रहित करती है। इस प्रकार यह एक कंबल की तरह कार्य करती है तथा पृथ्वी को

न तो अधिक गर्म तथा न ही अधिक ठंडा होने देती है। जलवाष्प वायु को स्थिर और अस्थिर होने में भी

योगदान देती है।

धूलकण

वायुमंडल में छोटे-छोटे ठोस कणों को भी रखने की क्षमता होती है। ये छोटे कण विभिन्न स्रोतों जैसे-

समुद्री नमक, महीन मिट्टी, धुएँ की कालिमा, राख, पराग, धूल तथा उल्काओं के टूटे हुए कण से निकलते

हैं। धूलकण प्रायः वायुमंडल के निचले भाग में मौजूद होते हैं, पिफर भी संवहनीय वायु प्रवाह इन्हें काफी  ऊँचाई तक ले जा सकता है। धूलकणों का सबसे अधिक जमाव उपोष्ण और शीतोष्ण प्रदेशों में सूखी हवा के कारण होता है, जो विषुवत् और धु्रवीय प्रदेशों की तुलना में यहाँ अधिक मात्रा में होते है। धूल और नमक के कण आर्द्रताग्राही केद्र की तरह कार्य करते हैं जिस के चारों ओर जलवाष्प संघनित होकर मेघों का निर्माण करती हैं।

Internal Structure of Earth

Internal Structure of Earth | पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Internal Structure of Earth | पृथ्वी की आंतरिक संरचना से तात्पर्य पृथ्वी की सतह से उसके केन्द्र तक लंबवत संरचना से है। भूगोलविदों एवं भूवैज्ञानिकों नें पृथ्वी की आंतरिक संरचना को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा है।

Internal Structure of Earth

Internal Structure of Earth | भूपर्पटी (crust)

Internal Structure of Earth | यह ठोस पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है। यह बहुत भंगुर (Brittle) भाग है जिसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों व महासागरों  के नीचे अलग.अलग है। महासागरों में भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है। महासागरों के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 कि0 मी0 है| जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 कि0 मी0 तक है। मुख्य पर्वतीय शृंखलाओं के क्षेत्रा में यह मोटाई और भी अधिक है। हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे भूपर्पटी की मोटाई लगभग 70 कि0मी0 तक है |

Internal Structure of Earth | मैंटल (Mantle)

Internal Structure of Earth | भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है। यह मोहो असांतत्य से आरंभ होकर 2,900 कि0 मी0 की गहराई तक पाया जाता है। मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलतामंडल कहा जाता है। ‘एस्थेनो’ शब्द का अर्थ दुर्बलता से है। इसका विस्तार 400 कि0मी0 तक आँका गया है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है, उसका मुख्य स्त्रोत यही है। भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल कहलाते हैं। इसकी मोटाई 10 से 200 कि0 मी0 के बीच पाई जाती है। निचले मैंटल का विस्तार दुर्बलतामंडल के समाप्त हो जाने वेफ बाद तक है। यह ठोस अवस्था में है।

क्रोड (Core)

जैसा कि पहले ही इंगित किया जा चुका है कि भूकंपीय तरंगों  ने पृथ्वी के क्रोड को समझने में सहायता की है। क्रोड व मैंटल की सीमा 2,900 कि0मी0 की गहराई पर है।  बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है जबकि आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में है। क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल व लोहे का बना है। इसे निफे  परत के नाम से भी जाना जाता है।


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SSC CGL 2024: Notification, Application, Exam Dates, Vacancies, Syllabus, Admit Card & Result

The SSC CGL 2024 notification is anticipated to be released in July. Once the official notification is out, the Commission will enable the online application link for SSC CGL 2024. The SSC CHSL and SSC MTS notifications have been delayed, which in turn has pushed back the release of the SSC Combined Graduate Level 2024 notification. Recently, the Commission transitioned to a new website, ssc.gov.in, causing delays in all notifications. Applicants will have one month to complete the SSC CGL 2024 online applications. The SSC CGL 2024 Tier 1 exam is expected to take place in October 2024.

एसएससी सीजीएल 2024 अधिसूचना जुलाई में जारी होने की उम्मीद है। एक बार आधिकारिक अधिसूचना जारी होने के बाद, आयोग एसएससी सीजीएल 2024 के लिए ऑनलाइन आवेदन लिंक सक्षम करेगा। एसएससी सीएचएसएल और एसएससी एमटीएस अधिसूचना में देरी हुई है, जिसके कारण एसएससी संयुक्त स्नातक स्तर 2024 अधिसूचना जारी करने में देरी हुई है। हाल ही में, आयोग ने एक नई वेबसाइट ssc.gov.in पर बदलाव किया, जिससे सभी अधिसूचनाओं में देरी हुई। आवेदकों के पास एसएससी सीजीएल 2024 ऑनलाइन आवेदन पूरा करने के लिए एक महीने का समय होगा। SSC CGL 2024 टियर 1 परीक्षा अक्टूबर 2024 में होने की उम्मीद है।

SSC CGL 2024

SSC CGL 2024: SSC CGL 2024 Posts

SSC CGL 2024: In the official SSC CGL 2024 notification, the Staff Selection Commission will announce the names of the SSC CGL posts, the number of vacancies, the salary details, and the corresponding age limits. Previously, the Commission included the following SSC CGL posts in the official notification:

SSC CGL 2024: आधिकारिक एसएससी सीजीएल 2024 अधिसूचना में, कर्मचारी चयन आयोग एसएससी सीजीएल पदों के नाम, रिक्तियों की संख्या, वेतन विवरण और संबंधित आयु सीमा की घोषणा करेगा। इससे पहले, आयोग ने आधिकारिक अधिसूचना में निम्नलिखित एसएससी सीजीएल पदों को शामिल किया था |

SSC CGL पदों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

समूह ‘बी’ राजपत्रित
समूह ‘बी’ अराजपत्रित
समूह ‘सी’

  • Group ‘B’ Gazetted
  • Group ‘B’ Non-Gazetted
  • Group ‘C’

SSC CGL 2024: Eligibility Criteria

SSC CGL 2024: The SSC CGL 2024 notification will outline the eligibility criteria for the exam. Candidates should consult the notification to understand the required educational qualifications, age limits, and other conditions necessary for applying to the exam.

SSC CGL 2024: एसएससी सीजीएल 2024 अधिसूचना परीक्षा के लिए पात्रता मानदंड की रूपरेखा तैयार करेगी। परीक्षा में आवेदन करने के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यता, आयु सीमा और अन्य शर्तों को समझने के लिए उम्मीदवारों को अधिसूचना देखनी चाहिए।

SSC CGL 2024: SSC CGL 2024 Educational Qualification Required

SSC CGL 2024: The Commission will specify the educational qualifications for each post individually. These qualifications will be detailed in the official SSC CGL 2024 notification. Candidates can find the SSC CGL 2024 educational qualifications here.

SSC CGL 2024: आयोग प्रत्येक पद के लिए व्यक्तिगत रूप से शैक्षणिक योग्यता निर्दिष्ट करेगा। इन योग्यताओं का विवरण आधिकारिक एसएससी सीजीएल 2024 अधिसूचना में दिया जाएगा। उम्मीदवार यहां एसएससी सीजीएल 2024 शैक्षणिक योग्यता पा सकते हैं।

SSC CGL 2024: Application Fee

Candidates will need to pay the specified SSC CGL 2024 application fee. The Commission will outline the application fee in the official notification. Below, candidates can view the SSC CGL 2024 application fee as stated in the previous exam’s official notification.

उम्मीदवारों को निर्दिष्ट एसएससी सीजीएल 2024 आवेदन शुल्क का भुगतान करना होगा। आयोग आधिकारिक अधिसूचना में आवेदन शुल्क की रूपरेखा देगा। नीचे, उम्मीदवार एसएससी सीजीएल 2024 आवेदन शुल्क देख सकते हैं जैसा कि पिछली परीक्षा की आधिकारिक अधिसूचना में बताया गया है।

Unreserved Category/OBC100
Reserved CategoryNil

SSC CGL 2024: How To Apply for the SSC CGL 2024?

  1. Visit the official SSC website at ssc.gov.in.
  2. Navigate to the admit card tab in the top menu.
  3. Select the link for the desired regional website.
  4. On the regional site’s homepage, click on the SSC CGL 2024 Tier 1 application status link.
  5. Enter your registration number and date of birth when prompted.
  6. Your SSC CGL 2024 application status will then be displayed on the screen.

SSC CGL 2024: SSC CGL 2024 Syllabus

GK Syllabus
  • National
  • Polity and Governance
  • Economy
  • Environmental Issues
  • Geography and Agriculture
  • International News
  • Science & Tech.
  • Society
  • Government Schemes
  • Person in News and Awards
  • Sports
  • Others

SSC CGL 2024: SSC CGL 2024 Exam Pattern

Candidates are advised to thoroughly understand the SSC CGL 2024 exam pattern to enhance their exam performance. The official notification will detail the SSC CGL 2024 exam pattern, which is not anticipated to undergo changes. Candidates can refer to the SSC CGL exam pattern 2024 for each tier individually.

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FORGOT ADHAR NUMBER | आधार नंबर भूल गए : बस नाम और मोबाइल नंबर से ऐसे पायें आधार नंबर

FORGOT ADHAR NUMBER | आधार नंबर भूल गए : आधार नंबर भूल जाने पर कैसे प्राप्त करें

FORGOT ADHAR NUMBER आधार कार्ड एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो हर भारतीय नागरिक के लिए पहचान और पते का प्रमाण है। लेकिन कई बार ऐसा हो सकता है कि हम अपना आधार नंबर भूल जाएं। चिंता न करें, आप इसे आसानी से वापस प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ हम आपको बताएँगे कि आधार नंबर भूल जाने पर कैसे प्राप्त करें:

1. यूआईडीएआई की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएँ

सबसे पहले, आपको यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा। इसके लिए आप अपने वेब ब्राउज़र में https://myaadhaar.uidai.gov.in/retrieve-eid-uid टाइप करें।

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2. ‘Retrieve Lost or Forgotten EID/UID’ विकल्प चुनें

FORGOT ADHAR NUMBER : वेबसाइट के होमपेज पर, आपको ‘My Aadhaar’ मेनू में ‘Retrieve Lost or Forgotten EID/UID’ विकल्प मिलेगा। इस पर क्लिक करें।

3. आवश्यक जानकारी भरें

नए पेज पर, आपको अपना पूरा नाम, पंजीकृत मोबाइल नंबर या ईमेल आईडी और कैप्चा कोड भरना होगा। यह जानकारी भरने के बाद ‘Send OTP’ बटन पर क्लिक करें।

4. OTP (वन टाइम पासवर्ड) प्राप्त करें

आपके पंजीकृत मोबाइल नंबर या ईमेल आईडी पर एक OTP भेजा जाएगा। इस OTP को संबंधित फील्ड में दर्ज करें और ‘Verify OTP’ बटन पर क्लिक करें।

5. आधार नंबर या एनरोलमेंट आईडी प्राप्त करें

OTP सफलतापूर्वक दर्ज करने के बाद, आपको स्क्रीन पर आपका आधार नंबर या एनरोलमेंट आईडी दिखाई देगी। आप इसे नोट कर सकते हैं या भविष्य के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।

6. आधार कार्ड डाउनलोड करें (वैकल्पिक)

यदि आपको तुरंत अपना आधार कार्ड डाउनलोड करना है, तो आप यूआईडीएआई की वेबसाइट पर जाकर ‘Download Aadhaar’ विकल्प का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए आप अपना आधार नंबर दर्ज कर सकते हैं और प्रक्रिया को पूरा कर सकते हैं।