Cumulative Causation Model परिचय
Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल (Cumulative Causation Model) एक आर्थिक सिद्धांत है जिसे स्वीडिश अर्थशास्त्री गुन्नार मिर्डल ने प्रस्तुत किया था। इस मॉडल का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि किस प्रकार से आर्थिक और सामाजिक प्रक्रियाएं एक क्षेत्र में विकास और पिछड़ेपन को संचालित करती हैं। क्षेत्रीय योजना में, यह मॉडल बताता है कि किस प्रकार से विभिन्न आर्थिक गतिविधियाँ एक दूसरे पर प्रभाव डालती हैं और कैसे यह प्रभाव समय के साथ संचयी (cumulative) होता है।
Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल की अवधारणा
Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल इस सिद्धांत पर आधारित है कि आर्थिक विकास एक स्व-स्थायी प्रक्रिया है। इसका मतलब यह है कि एक बार जब कोई क्षेत्र आर्थिक विकास की राह पर चल पड़ता है, तो वहां के विकास की गति बढ़ती जाती है और यह विकास अन्य क्षेत्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। इस प्रक्रिया को समझने के लिए, हमें कुछ मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना होगा:
- प्राथमिक कारण (Primary Causes): यह वे प्रारंभिक आर्थिक गतिविधियाँ हैं जो किसी क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया शुरू करती हैं, जैसे कि नई फैक्ट्रियों की स्थापना, बुनियादी ढांचे का विकास आदि।
- सहायक कारण (Supporting Causes): यह वे अतिरिक्त गतिविधियाँ हैं जो प्राथमिक कारणों को सहायता प्रदान करती हैं, जैसे कि बेहतर परिवहन सुविधाएँ, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार, आदि।
- सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ (Positive Feedbacks): यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों में भी विकास को प्रेरित करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, तो यह अन्य क्षेत्रों से मजदूरों को आकर्षित करेगा, जिससे वहां की आर्थिक गतिविधियाँ और बढ़ेंगी।
Cumulative Causation Model संचयी कारण मॉडल का प्रभाव
- आर्थिक विकास और असमानता: संचयी कारण मॉडल यह बताता है कि किस प्रकार से आर्थिक विकास की प्रक्रिया असमानता को जन्म देती है। जब कोई क्षेत्र विकास की राह पर होता है, तो वहां के संसाधन और अवसर बढ़ते हैं, जिससे अन्य पिछड़े क्षेत्रों की तुलना में उस क्षेत्र में अधिक आर्थिक गतिविधियाँ होती हैं। इससे क्षेत्रीय असमानता बढ़ती है।
- विपरीत प्रभाव (Backwash Effects): संचयी कारण मॉडल का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि विकासशील क्षेत्रों की सफलता अन्य पिछड़े क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी क्षेत्र में अधिक रोजगार के अवसर होते हैं, तो अन्य क्षेत्रों से लोग वहां पलायन करने लगते हैं, जिससे उन पिछड़े क्षेत्रों की स्थिति और भी खराब हो जाती है।
- संतुलित विकास की आवश्यकता: संचयी कारण मॉडल यह भी इंगित करता है कि क्षेत्रीय योजना में संतुलित विकास की आवश्यकता है। यदि सभी क्षेत्रों में समान रूप से विकास नहीं होता है, तो यह असमानता और सामाजिक तनाव को जन्म दे सकता है। इसलिए, योजना निर्माताओं को इस मॉडल के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर संतुलित विकास की रणनीतियाँ बनानी चाहिए।
निष्कर्ष
संचयी कारण मॉडल क्षेत्रीय योजना में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो आर्थिक और सामाजिक विकास की प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है। यह मॉडल बताता है कि किस प्रकार से एक क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करता है और कैसे यह प्रक्रिया समय के साथ संचयी हो जाती है। इसके माध्यम से, योजना निर्माताओं को यह समझने में मदद मिलती है कि विकास को संतुलित और समग्र तरीके से कैसे आगे बढ़ाया जाए, ताकि क्षेत्रीय असमानता को कम किया जा सके और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से, संचयी कारण मॉडल की विस्तृत जानकारी और इसके क्षेत्रीय योजना में उपयोगिता को समझने का प्रयास किया गया है। उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।